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:: प्राग्वाट-इतिहास ::
[तृतीय
वीरप्रसविनी मेदपाटभूमीय गौरवशाली श्रेष्ठि-वंश
वि० सं० १४६५ से वि० सं० १५६६ पर्यन्त
श्री धरणविहार-राणकपुरतीर्थ के निर्माता श्रे० सं० धरणा और उसके ज्येष्ठभ्राता श्रे० सं० रत्ना
वि० शताब्दी पन्द्रहवीं के प्रारंभ में नांदियां (नंदिपुर ) नामक ग्राम में, जो सिरोही-स्टेट (सजस्थान) के अंतर्गत है सं० सांगण रहता था। सं० सांगण के कुरपाल नामक प्रसिद्ध पुत्र था। कुरपाल की स्त्री कामलदेवी सं० सांगण और उसका थी। कामलदेवी का अपर नाम कपुरदेवी था। कामलदेवी की कुक्षी से सं० रत्ना पुत्र कुरपाल ___और सं० धरणा (धन्ना) का जन्म हुआ। दोनों पुत्र दृढ़ जैनधर्मी, नीतिकुशल, उदार एवं बुद्धिमान् नरश्रेष्ठ थे।
सं० रत्ना बड़ा और सं० धरणाशाह छोटा था। दोनों में अत्यधिक प्रेम था। सं० रत्ना की स्त्री का नाम रत्नादेवी था । रत्नादेवी की कुक्षी से लाषा, सलपा, मना, सोना और सालिग नामक पाँच पुत्र हुये थे। सं० सं० रत्ना और सं० धरणा- धरणा की स्त्री का नाम धारलदेवी था और धारलदेवी की कुक्षी से जाखा और जावड़ शाह
नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए थे। सं, रत्ना और सं० धरणा दोनों भ्राता राजमान्य और गर्भश्रीमन्त थे। सिरोही-राज्य के अति प्रतिष्ठित कुलों में से इन का कुल था। दोनों भ्राता बड़े ही धर्मिष्ठ एवं परोपकारी थे । सं० धरणा अपने बड़े भ्राता सं० रत्ना से भी अधिक उदार, सहृदय, धर्म और जिनेश्वर का परमोपासक था । वह बड़ा ही सदाचारी, सत्यभाषी और मितव्ययी था। धर्म के कार्यों में, दीन-हीनों की सहायता में वह अपने द्रव्य का सदुपयोग करना कभी नहीं भूलता था। सिरोही के प्रतापी राजा सेसमल की राजसभा में इन्हीं गुणों के कारण सं० धरणा का बड़ा मान था।
दोनों भ्राता सं० रत्ना और धरणा ने तथा शाह लींबा ने अपने परिवार के सहित वि० सं० १४६५में फाल्गुण शुक्ला प्रतिपदा को पिंडरवाटक में (पींडवाड़ा) श्री तपागच्छीय श्रीमद् सोमसुन्दरसूरि के द्वारा श्री मूलनायक महावीरस्वामी की प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित करवाकर राजमान्य विश्वानन्ददायक श्री महावीरजिनालय में स्थापित करवाई।
प्राग्वाटज्ञाति में आभूषण समान महणा नामक एक अति प्रसिद्ध व्यवहारी हो चुका था। वह अति श्रीमंत और उदारमना था । उसके जोला(?) नामक पुत्र था । श्रे० जोला का पुत्र भावठ() अति ही सज्जन और
नादिया ग्राम का नाम किसी उक्त वंशसम्बन्धी शिलालेख में नहीं मिलता है। पन्द्रहवीं शताब्दी के पश्चात् के अनेक प्रसिद्ध, अप्रसिद्ध कवि, सूरि एवं मुनियों द्वारा रचे गये राणकपुरतीर्थसंबंधी स्तवनों में नादिया ग्राम का नाम स्पष्टतया वर्णित है। जनश्रति भी इस मत की प्रबल पुष्टि करती है।
पिंडरवाटक में श्री महावीरजिनालय के वि० स०१४६५ के सं० धरणा के लेख में सांगा ( सांगण ) का पुत्र पुर्णसिंह की स्त्री जाल्हणदेवी और उनका पुत्र कुरपाल लिखा है।
- -श्र० प्र० ० ले० सं० आबू भा० ५ ले० ३७४ प्रा० ० ले०सं०भा०२ के ले० ३०७ में मांगण छपा है। पं० लालचन्द्र भगवानदास गांधी, बड़ौदा और मैं दोनों बड़ौदा जाते समय ता० २१ दिसम्बर सन् १६५२ को श्री राणकपुरतीर्थ की यात्रा करते हुए गये थे। हमने मूल लेख जो प्रमुख देवकुलिका के बाहर एक बड़े प्रस्तर पर उत्कीर्णित है पढ़ा था । उसमें स्पष्ट शब्द में 'सांगण' उत्कीर्णित है।