________________
खण्ड ]
:: न्यायोपार्जित द्रव्य से मंदिरतीर्थादि में निर्माण जीर्णोद्धार कराने वाले प्रा०ज्ञा० सद्गृहस्थ-सं० मंडलिक :: [२५६
धर्मात्मा स्त्री थी । लाखूदेवी का पुत्र श्रे० घणपाल ( धनपाल ) था । धणपाल महायशस्त्री एवं कीर्त्तिशाली श्रावक हुआ है। उसने श्रीशत्रुंजयमहातीर्थ, गिरनारतीर्थ, अर्बुदतीर्थ, जीरापल्लीतीर्थ, चित्रकूटतीर्थ आदि की संघसहित तीर्थयात्रा की और संवपति के पद को धारण किया तथा आनन्दपूर्वक संघयात्रा करके वि० सं० १४७८ पौष शु० ५ को स्वभा० हासूदेवी पुत्र श्रे० हाजा, भोजराज, धनराज, पुत्रवधू देऊदेवी, भाऊदेवी, धाईदेवी, पौत्र देवराज, नृसिंह, पुत्रिका पूनी, पूरी, मृगद, चमकू आदि कुटुम्ब से परिवृत्त होकर स्वविनिर्मित श्री शांतिनाथप्रासाद की प्रतिष्ठा महामहोत्सवपूर्वक तपागच्छनायकनिरुपममहिमानिधानयुगप्रधानसमान श्री श्री सोमसुन्दरसूरि द्वारा करवाई | श्रीमद् सोमसुन्दरसूरि की निश्रा में भट्टारकपुरंदर श्रीमुनिसुन्दरभूरि, श्रीजयचन्द्रसूरि, श्रीभुवनसुन्दरसूरि, श्रीजिनसुन्दरसरि, श्रीजिनकीर्त्तिसूरि, श्रीविशालराजसूरि, श्रीरत्नशेखरसूरि, श्रीउदयनंदिसूरि, श्रीलक्ष्मीसागरसूरि, महामहोपाध्याय श्री सत्यशेखरगणि, श्रीसूरसुन्दरगणि, श्रीसोमदेवगण, पं० सोमोदयमणि आदि प्रखर तेजस्वी पंडितशिष्यवर्ग था। महोत्सव का महत्व श्रीमद् सोमसुन्दरसूरि के बहुलशिष्यवर्ग की उपस्थिति से ही सहज समझ में आ सकता है कि जिस महोत्सव में इतने प्रखर पंडित एवं तेजस्वी आचार्य, उपाध्याय, साधु और पंडित संमिलित हों, उस महोत्सव में कितना द्रव्य व्यय किया गया होगा और कितने दूर २ एवं समीप के नगर, ग्रामों से संघ, कुटुम्ब एवं श्रावकगण महोत्सव में भाग लेने के लिये तथा युगप्रधानसमान श्रीसोमसुन्दरसूरि और उनके महाप्रभावक शिष्यवर्ग के दर्शनों का लाभ लेने के लिये आये होंगे । १
बालदाग्राम के जिनालय के निर्माता प्राग्वाटज्ञातीय बंभदेव के वंशज वि० सं० १४८५
बालदाग्राम में जो जिनालय हैं, वह प्राग्वाटज्ञातीय धर्ममूर्ति बंभदेव का बनाया हुआ है। श्रे० बंभदेव के वंश में श्रे० थिरपाल नामक अति ही भाग्यशाली श्रावक हुआ । थिरपाल की धर्मपरायणा स्त्री देदीबाई के नरपाल, हापा, तिहुणा, काल्हू, केल्हा और पेथड़ ६ पुत्ररत्न उत्पन्न हुये ।
श्रे० विहुण के वीक्रम और साढ़ा नामक दो पुत्र थे । श्रे० साढ़ा के काजा, चांपा, सूरा और सहसा नामक चार पुत्र थे । श्रे० पेथड़ की स्त्री का नाम जाणीदेवी था । जाणीदेवी की कुक्षी से थड़सिंह और मं० ऊदा का जन्म हुआ ।
।
मं० हापा के राम नाम का पुत्र था । श्रे० राम के राउल, मोल्हा, कचा और मं० वील्हा नामक चार पुत्र हुये थे । मं० वील्हा के हरभा और हरपाल नामक दो पुत्र हुये थे ।
कच्छोलीवालगच्छीय पूर्णिमापचीय वाचनाचार्य गुणभद्र से समस्तगोष्ठिकों के सहित छः ही भ्राता नरपाल, २ हापा, तिहुखा, काल्हू, केल्हा और पेथड़ ने वि० सं० १४८५ में जीर्णोद्धार करवाकर ( उसी संवत् में) ज्येष्ट शु० ७
१- प्रा० ले० सं० भा० १ ० ११८ ।
२ - प्र० प्र० जै० ले० सं० ० २६८, २६६