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[श्रीयुत पण्डितवर्य लालचन्द्र भगवानदास गांधी, बड़ौदा ने श्री प्राग्वाट-इतिहास-प्रकाशकसमिति की प्रार्थना को स्वीकार कर जो प्रस्तुत इतिहास का अवलोकन किया था और उस पर जो उन्होंने अपना अभिप्राय वि० सं० २००६ पौ० कृ०२ शुक्र० तदनुसार ता०२-१-१६५३ को समिति के नाम बड़ौदा से पत्र लिख कर प्रकट किया था, वह उद्धृत किया जाकर यहाँ प्रकाशित किया गया है। &
-लेखक] आप सजनों ने प्राग्वाट-वंश-ज्ञाति का जो इतिहास बहुत परिश्रम से तैयार करवाया है और उत्साही लेखक बन्धु श्री दौलतसिंहजी लोढ़ा (बी० ए० कवि 'अरविंद') ने जो दिलचस्पी से संकलित किया है; उसका निरीक्षण मैंने आपकी अनुमति से राणी में और बड़ौदा में करीब २५ दिनों तक किया है। आपके सामने और लेखक के समक्ष कई प्रकरण-विषय पर गंभीर चर्चा-विचारणा भी हुई थी। कई अंश-सम्बन्ध में अपनी ओर से हमने सलाह-सूचना भी दी थी, वह प्रायः स्वीकारी गई । कई अंश में लेखक ने अपनी स्वतंत्रता भी प्रकाशित की है। जहाँ तक मैं देख सका हूं और यथामति सोच सका हूँ—यह कार्य ठीक-ठीक तैयार हो गया है, इसको जल्दी शुद्ध करके प्रकाश में लाना चाहिए, जिससे जगत् में समाज को यह प्रतीत हो जाय कि इस वंश-ज्ञाति के सजन कैसे उच्च नागरिक हो गए, कैसे राजनीतिज्ञ, व्यवहारदक्ष, विद्वान्, संयमी, सदाचारी, धर्मात्मा, कलाप्रेमी, कर्तव्यनिष्ठ और सद्गुणगरिष्ठ थे ? पूर्वजों का प्रामाणिक इतिहास, वर्तमान और भावी प्रजा को उच्च प्रकार की प्रेरणाशिक्षा दे सकता है।
वर्षों से किया हुआ परिश्रम अब बिना विलम्ब प्रकाश में लाना चाहिए यह एक उच्च प्रकार का प्रशंसनीय गौरवास्पद स्तुत्य कर्तव्य है । परमात्मा से मैं प्रार्थना करता हूँ कि—यह यशस्वी कार्य जन्दी प्रकाश में आवे और अपन आनन्द मनावें । शुभं भवतु ।
आपका विश्वासुलालचन्द्र भगवान गांधी ५
(जैन पण्डित) OctoKRECECA-GCCheck
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