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शुभाशीर्वाद !
___ श्री पौरवाड़-इतिहास-प्रकाशक-समिति, स्टेशन रानी द्वारा प्रकाशित 'पौरवाड़इतिहास' का प्रथम भाग हमारे सम्मुख है । इसको आद्योपांत वाचने और मनन करने से अपना यह शुभाशीर्वादयुक्त अभिप्राय व्यक्त करना पड़ता है कि
इस इतिहास में प्रामाणिकता है, सत्यता है, ऐतिहासिकता है, साहित्यिकता है और इसके निर्माता श्रीयुत् दौलतसिंहजी लोढ़ा बी० ए० की खोज एवं हार्दिक * प्रेरणा की परिपूर्णता है। यह इतिहास शृंखलाबद्ध है, साहित्यिक ढंग से लिखित है और
यह पौरवाड़ ज्ञाति के गौरव की यशोगाथा है। इसके पूर्व ओसवालज्ञाति का इतिहास भी प्रकाशित हुआ है, परन्तु उससे इसमें अधिक प्रामाणिकता और लेखनशैली की सौष्ठवता है। इतना ही नहीं, इसमें उत्तम श्रेणी की ओजस्विता भी है जो युगों पर्यन्त इस ज्ञाति को प्राणमयी एवं गौरवशाली बनाये रक्खेगी।
हमारे सदपदेश से पावावाले श्रीयुत ताराचन्दजी मेघराजजी ने इस कार्य को सम्पन्न कराने का भार अपने हाथ में लिया और उसके लिये अनेक टक्करें झेल करके भी पूरी तत्परता एवं लग्न से साहित्य-संचय किया और स्वल्प समय में ही इस महान कार्य को सम्पन्न कर दिखाया, इससे हमें बड़ा सन्तोष है। इसके लिये हम पौरवाड़इतिहास के निर्माता दौलतसिंहजी लोढ़ा बी० ए० को और श्रीयुत् ज्ञातिसेवाभावी ताराचन्दजी मेघराजजी पावावाले को हार्दिक धन्यवाद देते हैं ।
प्रस्तुत इतिहास में प्राचीन स्थापत्य और मन्दिर निर्माण-शिल्पकला के नमूने रूप फोटूओं को स्थान दिया गया है और उनकी सविवरण योजना कर दी गई है, यह इस इतिहास के अङ्ग को और भी अधिक शोभा-वृद्धि करने वाली और सहृदय इतिहासज्ञाताओं के लिये आनन्दोत्पादक है । इत्यलं विस्तरेण । सियाना, आश्विन शुक्ला प्रतिपदा ।
-विजययतीन्द्रसूरि विक्रम सं० २०१०