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खण्ड]
:: मंत्री भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री वंश और दंडनायक तेजपाल और उसका परिवार ::
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गूर्जरसाम्राज्य की सेवायें करने में समर्थ हो सके एवं धार्मिक और साहित्यिक महान् सेवायें कर सके वह सामर्थ्य और सुविधा चतुरा गुणवती एकमात्र अनुपमा से ही प्राप्त हुआ था।
___ तेजपाल और अनुपमा में अत्यन्त प्रेम था। अनुपमा रात और दिन धार्मिक, सामाजिक और सेवासंबंधी कार्यों में इतनी व्यस्त रहती थी कि आगे जाकर उसको अपने योग्य पति तेजपाल की सेवा करने का भी समय नाममात्र को मिलने लगा और इसका उसको पश्चाताप बढ़ने लगा। निदान अनुपमा के प्रस्ताव पर तेजपाल ने दूसरा विवाह वि० सं० १२६० या १२६३ के पश्चात् पत्तननिवासी मोढनातीय ठकुर झाल्हण के पुत्र ठक्कुर प्राशराज की पुत्री ठक्कुराणी सन्तोषकुमारी की पुत्री सुहड़ादेवी के साथ किया । अनुपमा की कुक्षी से वीर और तेजस्वी पुत्र लावण्यसिंह जिसके श्रेयार्थ लूणिगवसतिका निर्माण करवाया गया था, उत्पन्न हुआ और वउलदेवी नाम की एक पुत्री उत्पन्न हुई । सुहड़ादेवी के एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम सुहड़सिंह ही रक्खा गया था।
___ अनुपमादेवी का देहावसान महामात्य वस्तुपाल की मृत्यु के १ या १॥ वर्ष पूर्व हो गया था। अनुपमा की मृत्यु से दोनों मन्त्री भ्राता ही नहीं समस्त गुजरात दुःखी हुआ। तेजपाल बहुत दुःखी रहने लगा। तेजपाल की यह अवस्था श्रवण कर वस्तुपाल के कुलगुरु विजयसेनसूरि धवलकपुर में आये और तेजपाल को संसार की असारता समझा कर सान्त्वना दी । परन्तु महामात्य और अनोपमा की मृत्यु के पश्चात् तेजपाल उदासीन-सा ही रहने लगा था । निदान वह राज्य और धर्म की सेवा करता हुआ वि० सं० १३०४ में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।
स्त्रीरत्न अनोपमा का यह इकलौता पुत्र था। लूणसिंह को लावण्यसिंह भी कहते थे। लूणसिंह वीर और प्रतिभासम्पन्न था । मंत्री भ्राताओं को लूणसिंह का पद-पद पर सहयोग प्राप्त होता रहा था। विशेष कर लूणसिंह सामलूणसिंह और उमका सौतेला रिक व्यवस्थाओं में देश-विदेश में चलती हलचलों की जानकारी प्राप्त करने में अत्यन्त भ्राता सुहसिंह कुशल था। गुप्तचर विभाग का यह अध्यक्ष था। लाटनरेश शंख की प्रथम पराजय इसके और महामात्य वस्तुपाल के हाथों हुई थी । लूणसिंह जैसा वीर था, वैसा ही साहित्यप्रेमी भी था। विद्वानों का, कवियों का वह सदा समादर करता था । हेमचन्द्रसूरिकृत 'देशीनाममाला' नामक ग्रंथ की एक प्रति आचार्य जिनदेवमूरि के लिये उसने अपनी पंचकूल की प्रमुखता में भृगुकच्छ में वि० सं० १२६८ में लिखवाई थी। जिसको कायस्थज्ञातीय जयतसिंह ने लिखा था। लूणसिंह के दो स्त्रियाँ थीं । रयणदेवी और लक्ष्मीदेवी रयणदेवी के गउरदेवी नामक एक कन्या उत्पन्न हुई। लूणसिंह के कोई पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ था।
तेजपाल की दूसरी स्त्री सुहड़ादेवी की कुक्षि से सुहड़सिंह नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। इसके सुहड़ादेवी और सुलखणादेवी नामकी दो स्त्रियां थीं । दंडनायक तेजपाल ने अर्बुदगिरि पर विनिर्मित हस्तिशाला में दशवाँ गवाक्ष सुहड़सिंह और उसकी दोनों स्त्रियों के श्रेयार्थ करवाया था ।
प्र०चि०० ते. प्र०१६६) पृ० १०४) १६७) पृ०१०५ । जै० प्र० पु० सं० १६१) पृ०१२३ D. C. M. P. (G O. S. Vo.- LXX VI) P.60 (पत्तनभंडार की सूची) अ० प्रा० ० ले० सं० ले० २५०