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:: प्राग्वाट-इतिहास ::
[द्वितीय
महामात्य की सप्त भगिनियाँ
महामात्य वस्तुपाल तेजपाल के जाल्हु, माऊ, साऊ, धनदेवी, सोहगा, वयजू और पद्मा नाम की गुणवती, सुशीला और दृढ़ जैनधर्मिनी सात भगिनियें थीं । योग्य आयु प्राप्त करने पर इनमें से छह का विवाह योग्य वरों के
साथ में कर दिया गया था। परन्तु वयजू जो छट्ठी बहिन थी आयु भर कुमारी सप्त भागनिया तथा व विरहिन रही। भवणपाल नामक व्यक्ति से जो महामात्य वस्तुपाल का अत्यन्त विश्वासपात्र वीर सेवक था वयजू की सहगति (सगाई) हो गई थी। भुवणपाल लाटनरेश शंख के साथ हुये द्वितीय युद्ध में भयंकर संग्राम करता हुआ मारा गया। महामात्य वस्तुपाल ने अपने वीर सेवक की पुण्यस्मृति में भुवणपालेश्वर नामक एक विशाल प्रासाद खंभात में विनिर्मित करवाया जो आज तक उस वीर के नाम को चरितार्थ करता आ रहा है। भुवणपाल की वीरगति सुन कर कुमारी वयजू ने विधवा के वस्त्र धारण कर लिये और आयु भर भुवणपाल के वृद्ध माता-पिता की सेवा करती रही। वयजू के इस त्याग और निर्मल प्रेम में मानव-मानव में भेद मानने वालों के लिये कितना उपदेश भरा है, सोचने और समझने की बात है। पद्मल सर्व से छोटी बहिन थी। लूणिगवसति में दंडनायक तेजपाल ने अपनी सातों बहिनों के श्रेयार्थ २६, २७, २८, २९, ३०, ३१, ३५वीं देवकुलिकायें उनके नामों के क्रमानुसार वि० सं० १२६३ में विनिर्मित करवाकर प्रतिष्ठित करवाई थीं।
जैसा पूर्व लिखा जा चुका है कि मंत्री भ्राताओं के सात बहिनें थीं, जिनमें पद्मा सर्व से छोटी होने के कारण अधिक प्रिय थी । पद्मा बचपन से ही नारी-अधिकार को लेकर अग्रसर होती रही थी। वैसे तो मंत्री-भ्राताओं की
- सात ही बहिनें अत्यधिक गुणवती एवं पतिव्रतायें थीं। परन्तु पद्मा में स्त्री का अभिमान पद्मा का कुछ जीवन परिचय
___ था। वह स्वाभिमानिनी थी। पद्मा का विवाह धवल्लकपुर के नगर सेठ प्राग्वाटज्ञातीय श्रेष्ठि यशोवीर के पुत्र जयदेव के साथ में हुआ था । महामात्य ने जैत्रसिंहके पश्चात् खंभात का राजचालक जयदेव को ही बना कर भेजा था । जयदेव बुद्धिमान् तो अवश्य था ही उसने खंभात का शासन बड़ी योग्यता से किया था।
लुणिगवसति की देवकुलिकाओं के लेख:प्रा० ० ले० सं० ले०६४,६५,६६,६७,६८,६६,? H. I. G. Pt. I ले० २०६ श्लो०१७