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________________ खण्ड] :: मंत्रीभ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री-वंश और महामात्य वस्तुपाल और उसका परिवार :: [१६३ मन्त्री भ्राता और उनका परिवार वि० सं० १२३८ से वि० सं० १३०४ पर्यन्त महामात्य के ज्येष्ठ भ्राता लूणिग और मल्लदेव अश्वराज-कुमारदेवी का ज्येष्ठ पुत्र लूणिग था। इसका जन्म सम्भवतः वि० सं० १२३८ और वि० सं० १२४० के अन्तर में हुआ था । लुणिग धार्मिक प्रवृत्ति का एक होनहार बालक था । अश्वराज ने इसको पढ़ने लूणिग और उसकी स्त्री के लिये पत्तनपुर में भेजा था। छोटी आयु में ही इसका विवाह कर दिया गया था। लूणादेवी वि० सं० १२५६-५८ के लगभग इसकी मृत्यु हो गई । * लूणिग की पत्नी का नाम लूणादेवी था । विवाह के थोड़े समय पश्चात ही लूणिग की मृत्यु हो जाने से इसके कोई सन्तान नहीं हो सकी । लूणादेवी भी वि० सं० १२८८ के पूर्व स्वर्ग को सिधार गई। अश्वराज-कुमारदेवी का द्वितीय पुत्र मालदेव था, जिसको मल्लदेव भी कहते हैं। इसका जन्म वि० सं० १२४०-४२ के लगभग हुआ। मल्लदेव के दो स्त्रियाँ थीं। लीलादेवी और प्रतापदेवी। लीलादेवी की कुक्षी से मालदेव या मल्लदेव और र पूणसिंह नामक पुत्र और सहजलदेवी और सद्मलदेवी नामक दो पुत्रियाँ उत्पन्न हुई उसकी दोनों स्त्रिया लीला- थीं। इसकी मृत्यु भी युवावस्था में ही हो गई । पुण्यसिंह, जिसे पूणसिंह भी कहा गया देवी, प्रतापदेवी व पुत्र है का विवाह अल्हणदेवी से हुआ था । अल्हणदेवी से पुण्यसिंह को एक पुत्र पेथड़ पुण्यसिंह या पूणसिंह नामक और एक पुत्री वलालदेवी प्राप्त हुई थी। अर्बुदगिरि पर विनिर्मित लूणिगवसहिका के नेमनाथ-चैत्यालय में दंडनायक तेजपाल ने अपने परिजनों के श्रेयार्थ वि० सं० १२८८ में अनेक देवकुलिकायें बनवाई थीं। क्रम से दूसरी देवकुलिका अल्हणदेवी के, पाँचवीं पेथड़ के, छट्ठी पुण्यसिंह के और आठवीं वलालदेवी के श्रेयार्थ बनवाई थीं। महामात्य वस्तुपाल और उसका परिवार . . ... अश्वराज-कुमारदेवी का यह तृतीय पुत्र था। इसका जन्म वि० सं० १२४२-४४ के अन्तर में हुआ होना चाहिए । पिता ने वस्तुपाल की शिक्षा भी पत्तन में ही करवाई थी। यह महा प्रतिभावान एवं कुशाग्रबुद्धि बालक वस्तुपाल और उसकी दोनों था। इसका विवाह लगभग १५-१६ वर्ष की आयु में ही प्राग्वाटवंशी ठक्कुर कान्हड़स्त्रियाँ ललितादेवी और देव की सुपुत्री ललितादेवी के साथ हो गया था। फिर भी इसने अपना अध्ययन वेजलदेवी अक्षुण्ण रक्खा । लगभग पच्चीस वर्ष की आयु के पश्चात् यह विद्याध्ययन समाप्त कर गुरु * वि० सं०१२८८ के पूर्व लुणादेवी का स्वर्गवास होना इस बात से सिद्ध होता है कि अर्बुदगिरि पर विनिर्मित वसहिका में तत्संवत् में तथा तत्संवत् पश्चात् कोई देवकुलिका लुणादेवी के श्रेयार्थ नहीं बनवाई गई। और न ही लूणिग की संतान के श्रेयार्थ ही कहीं कोई धर्मकृत्य किये गये का उल्लेख है।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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