SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६२] ..... : प्राग्वाट-इतिहास :: [द्वितीय नरवैद्य कुदालियाँ ५०० अतिरिक्त इस सुविधा-सामग्री के सहस्रों श्वेताम्बर और दिगंबर साधु, साध्वी, आचार्य भी धवलकपुर और धवलक्कपुर के निकटवर्ती ग्रामों एवं नगरों में भ्रमण-विहार करते रहते थे, जो निमन्त्रण पाकर तुरन्त संघ में सम्मिलित हो जाते थे। अश्ववैद्य कुहाड़ियाँ महामात्य वस्तुपाल की तीर्थयात्रायें माता-पिता के साथः १-वि० सं० १२४६ में शत्रुञ्जयतीर्थ की । २-वि० सं० १२५० में शत्रुञ्जयतीर्थ की । स्वर्गस्थ माता-पिता के श्रेयार्थ सपरिवारः १-वि० सं० १२७३ में शत्रुञ्जयतीर्थ की। महाविस्तार के साथ संघपति रूप से और सपरिवारः १-वि० सं० १२७७ में शत्रुञ्जयगिरनारतीर्थों की। २-वि० सं० १२६० शत्रुञ्जयगिरनारतीर्थों की । ३- , १२६१ ४- १२६२ ५- , १२६३ सपरिवारः ६-वि० सं० १२८३ में शत्रुञ्जयतीर्थ की। ७-वि० सं० १२८४ में शत्रुञ्जयतीर्थ की। - , १२८५ , ६- " १२८६ ." १०- , १२८७ ११- , १२८८ में शत्रुञ्जयतीर्थ की यात्रा करते हुये गिरनारतीर्थ पर स्वविनिर्मित मंदिरों की प्रतिष्ठार्थ यात्रा की। १२-वि० सं० १२८६ में शत्रुञ्जयतीर्थ की। १२॥-वि० सं० १२६६ शत्रुञ्जयतीर्थ की। अपरगायिन सह० १०००। सरस्वतीकण्ठाभरण [ आदि ] विरद २४ । नर्तकी १०० । वेसर शत १ संप्रदायसम (१) अश्ववैद्य १०, नरवैद्य १०० 'श्रीवस्तुपालस्य दक्षिणस्यां दिशि श्रीपर्वतं यावत् कीर्तनानि । 'संग्रामे श्रीवीरधवल कार्ये वार ६३ जेत्र(a)पदम् । सर्वाग्रे त्रीणि कोटिशतानि,१४ लक्ष, १८ सहस्र,८ शतानि द्रव्यव्ययः।' प्र० को परि०१ पृ०१३२ वि० सं० १२८७ में अबुंदगिरि पर बसे हुये प्राम देउलवाड़ा में तेजपाल और अनुपमा की देख-रेख में बनी लूणसिंहक्सहिना के नेमनाथचैत्यालय में भगवान् नेमनाथ की प्रतिमा फा० कृ०३ रविवार को कुलगुरु श्रीमद् विजयसेनसरि के हाथों प्रतिष्ठित करवाने के लिये महामात्य वस्तुपाल ने धवलकपुर में एक विशाल चतुर्विध संघ निकाला था। अगर यह संघयात्रा भी गिनी जाय तो महामात्य की १३॥ ही यात्रा हुई कही जा सकती है।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy