________________
१४६
:: प्राग्वाट - इतिहास ::
[ द्वितीय
महामात्य का इस आशय का पत्र चौहान राजा उदयसिंह के पास पहुँचा कि वीरमदेव भाग कर श्राया है, अगर उसकी तुमने सहायता की तो अपने प्राण भी खोओगे और राज्य भी गुमाओगे । वीरमदेव कुछ दिनों के बाद मार दिया गया और उसका सिर धवलकपुर भेज दिया गया। वीरमदेव को मरवाये जाने का एक कारण यह भी बतलाया जाता है कि वह अपने श्वसुर उदयसिंह को मारकर स्वयं जालोर का शासक बनने का प्रयत्न करने लगा था तथा आने जाने वाले यात्रियों को लूट कर उनको बड़ा तंग करने लगा था। अंत में उदयसिंह ने अपने वीर सैनिकों को भेज कर उसको मरवा डाला । गूर्जर भूमि एक बार फिर गृहकलह की अग्नि में पड़ कर भस्म होने से बच गयी । मण्डलेश्वर लवणप्रसाद भी इस समय जीवित थे । वीरमदेव उनको वीशलदेव से अधिक प्रियतर था । लेकिन वीरमदेव एक बार स्वयं मण्डलेश्वर को मारने पर उतारु हो गया था । अतः उन्होंने भी वीरमदेव की सहायता करने का तथा उसको सिंहासनारूढ़ करवाने का विचार ही नहीं किया । गूर्जरसम्राट् भीमदेव द्वि० भी वीरमदेव को नहीं चाहते । महामात्य वस्तुपाल के बल और बुद्धि से वीशलदेव का राज्य अब निष्कंटक हो गया।
का प्रयत्न करने लगा । वि० सं० १२६५ में लाटप्रदेश को वीरधवल ने जीत लिया था
गूर्जरप्रदेश के सर्व सामन्तों ने, ठक्कुरों ने एवं माण्डलिकों ने राणक वीशलदेव को अपना शिरोमणि स्वीकार कर लिया, लेकिन एक डाहलेश्वर नरसिंहदेव जो कर्ण का वंशज था और बाघेलावंश की हुई उन्नति और वीशलदेव की सार्वभौमता बढ़ते हुये गौरव को देखकर जलता था, वीरधवल का स्वर्गारोहण सुनकर स्वतन्त्र होने और डाइलेश्वर का दमन और अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया था । शंख का पुत्र भी डाहल के राजा से जा मिला और उसने भी अपने पिता का खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त करना चाहा। वीशलदेव अभी अभिनव और अनुभवहीन शासक था, वह यह देखकर भयभीत हो उठा। लेकिन महामात्य वस्तुपाल तेजपाल ने इससे घबराने का कोई कारण नहीं समझा । दंडनायक तेजपाल विशाल सैन्य लेकर डाहलेश्वर का सामना करने को चला । डाहलेश्वर परास्त हुआ और उसने वीशलदेव की अधीनता स्वीकार की । तेजपाल को डाहलेश्वर ने एक लक्ष स्वर्णमुद्रायें और अनेक बहूमूल्य वस्तुयें भेंट कीं । तेजपाल बहूमूल्य वस्तुयें और एक लक्ष स्वर्णमुद्रायें लेकर वीशलदेव की राजसभा में पहुँचा । वीशलदेव ने उठकर तेजपाल का पितातुल्य स्वागत किया और पारितोषिक रूप में एक लक्ष स्वर्णमुद्रायें जो डाइलेश्वर ने भेंट रूप में भेजी थीं, तेजपाल को ही भेंट में प्रदान कर दीं ।
रा०मा० (वीरम अने वीशल, वीरमसंबंधी बीजी हकीकत) पृ० ४७८ - ४८२
रा० मा० (वीसलदेव ने डाहलेश्वर बच्चे संग्राम) पृ० ४८३) से ४८५ व० च० श्रष्टम प्र० श्लोक ५५ से ७६ पृ० १२८, १२६