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________________ खण्ड] :: मंत्रीभ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री बंस और महामात्य की नीतिज्ञता से गृहकलह का उन्मूलन :: [ १५५ सामंत, ठक्कुर, माएडलिक पत्तन से अपना संबंध बिच्छेद कर चुके थे और अपने को स्वतन्त्र सजा समझने समे श्रे और जिनको भीमदेव द्वि० पुनः वश में नहीं कर सका था तथा बाहर से होने वाले आक्रमणकारियों को भी वह रोकने में सदा विफल रहा; वहाँ राणक वीरधवल और महामण्डलेश्वर इन दो मंत्री भ्राता वस्तुपाल, तेजपाल के बल, शौर्य, बुद्धि और चातुर्य की सहायता पाकर गूर्जरसांमतों, ठक्कुरों, माण्डलिकों को पुनः गूर्जरसम्राट् के आज्ञावी बना सके और दिल्लीपति, यादवमिरिनरेशों के आक्रमणों को विफल करने में सफल हो सके-मंत्री भ्राताओं का अमात्यकार्य कैसे सराहनीय नहीं कहा जा सकता है। महामात्य की नीतिज्ञता से मृहकलह का उन्मूलन राणक वीरधवल का स्वर्गारोहण और वीशलदेव का राज्यारोहण तथा वीरमदेव का अंत वि० सं० १२६५ (ई० सन् १५३८) में भरौंच के युद्ध में वीरधवल अति घायल हुआ और धवलकपुर में पहुंचते ही वीरगति को प्राप्त हो गया । समस्त गूर्जरप्रदेश में हाहाकार मच गया; क्योंकि वीरधवल ही एक ऐसा शासक था जो गूर्जरभूमि को निर्बल गुर्जरसम्राट् द्वितीय भीमदेव के अकुशल एवं शिथिल शासनकाल में बाहरी आक्रमणों से तथा भीतरी उपद्रवों से बचा सका था। वीरधवल के साथ उसकी मानिता राणियाँ तथा उसके १२० कृपापात्र अंगरक्षक भी जल कर स्वर्गगति को प्राप्त हुये । दिग्मूढ-सा महामात्य वस्तुपाल भी वीरधवल की चिता में जलने के लिये बहुत उत्साहित हुआ, लेकिन राजगुरु सोमेश्वर के सदुपदेश से वह रुक गया। अनेक सामंत और ठक्कुर भी चिता में जलने को तैयार हुये, लेकिन दंडनायक तेजपाल ने अपने अंगरक्षक सैनिकों की सहायता से उनको भी जलने से रोका । महामात्य वस्तुपाल ने वीरधवल के छोटे पुत्र वीशलदेव को जो बड़े पुत्र ऐयाशी वीरमदेव से अधिक उदार एवं बुद्धिमान था सिंहासनारूढ़ करना चाहा। वीरमदेव को वीरधवल भी नहीं चाहता था । वीरधवल की मृत्यु सुन कर वीरमदेव अपने साथी सामंत और ठक्कुरों को लेकर महामात्य वस्तुपाल से युद्ध करने को तैयार हुआ । वीरमदेव हारा और अपने श्वसुर जालोर के राजा उदयसिंह चौहान के पास सहायतार्थ पहुँचा । G. G. Pt. || P. 219 व० च० अ० प्र० श्लो० ४ से ४३ पृ० १२७,१२८ । प्र० चि० (हिन्दी) कु० प्र० १६४) १९५) पृ० १२८,१२६ प्र० को० व० प्र०१५०) पृ०१२४,१२५ G.G. Pt. 1|| P. 219 अनेक ग्रंथों में ऐसा लिखा मिलता है कि वीरधवल अपने संबंधी पंचग्राम के राजा अर्थात् राणी जयतलदेवी के भ्राता सांगण और चामुण्ड के साथ युद्ध करता हुश्रा रणभूमि में घोड़े पर से घायल होकर गिर पड़ा और मृत्यु को प्राप्त हुआ। यह युद्ध तो वि० सं० १२७७ में हुआ था और वीरधवल का स्वर्गारोहण वि० सं० १२६५ में हुआ अतः पंचग्राम के भूपतियों के साथ युद्ध करता हुश्रा वीरधवल घायल होकर गिर पड़ा और अंत में मृत्यु को प्राप्त हुआ, अमान्य है। वीरधवल का घायल होना और घोड़े पर से गिर पड़नेवाली एक घटना भद्रेश्वर के राजा भीमदेव के साथ हुये युद्ध की भी है। लेकिन इस युद्ध में वीरधवल घायल अवश्य हुआ था, लेकिन मृत्यु को प्राप्त नहीं हुआ था । वि० सं०१२६५ में सुअवसर देखकर उसने लाटनरेश शंख के ऊपर आक्रमण किया। इस युद्ध में शंख भी मारा गया और वीरधवल भी अत्यन्त घायल हुआ और अन्त में धवलकपुर में वीरगति को प्राप्त हुमा ।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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