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खण्ड] :: मंत्री भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री-वंश और महामात्य का पदत्याग और उसका स्वर्गारोहण : [१४७
महामात्य का पदत्याग और उसका स्वगारोहण
महाराणक बीशलदेव का अब राज्य निष्कंटक हो चुका था। उत्तराधिकारी वीरमदेव भी स्वर्गस्थ हो चुका था । समस्त गूर्जरसाम्राज्य में एकदम शांति और सुव्यवस्था थी । यद्यपि महाराणक वीरधवल के अकस्मात् देहावसान से गूर्जरराज्य को एक बहुत बड़ा धक्का लगा था। परन्तु फिर भी मन्त्री भ्राताओं के तेज, बल, पराक्रम, प्रभाव और व्यक्तित्व से स्थिति बिगड़ नहीं पाई। राज्यकोष भी परिपूर्ण था। बाह्य शत्रुओं का भी अन्त-सा हो गया था। गूर्जरसैन्य अत्यन्त समृद्ध और विस्तृत था । वीशलदेव के नाम पर मंत्री भ्राताओं ने अगणित धन व्यय कर वीशलदेव नामक एक अति रमणीक नगर बसाया । उसको समृद्ध राजप्रासादों, उद्यानों, सरोवर, वापी, कूप और मन्दिरोंहाट-बाटों से सुसज्जित बनाया । सर्वत्र शान्ति एवं सुव्यवस्था थी, लेकिन फिर भी महामात्य को अपना अभिन्न मित्र महाराणक वीरधवल के स्वर्गस्थ हो जाने से चैन नहीं पड़ती थी। निदान अपना भी अन्त समय निकट आया हुआ जानकर एक दिन महामात्य ने राजसभा में महाराणक वीशलदेव के समक्ष राज्यमुद्रा अर्पित करते हुये अब राज्यकार्य करने से अपनी अनिच्छा प्रकट की । महाराणक वीशलदेव के बार-बार प्रार्थना करने पर भी वस्तुपाल अपने निश्चय से नहीं टले । अन्त में वस्तुपाल की प्रार्थना मान्य करनी पड़ी । महाराणक वीशलदेव ने वह राज्य-मुद्रा दंडनायक
'एतक्कि पुनरात्मनैव सजनैराच्छिद्यमानोप्यसौ मंत्रीशस्य मुशायते स्म निभृतं देहेऽस्य दाहज्वरः ॥२६॥ 'वर्षे हर्षनिषण्णषण्णवतिके श्रीविक्रमोवीभृतः कालाद् द्वादशसंख्यहापनशतात् मासेऽत्र माघाहये । पंचम्या च तिथौ दिनादिसमये वारे च भानोऽस्तवोद्वोदु सद्गतिमस्ति लग्नमसमं तत्त्वर्यता त्वर्यताम् ॥३७॥ 'विज्ञाप्येति निगूढ़मन्यु ललितादेव्या विसृष्टोऽनुगानापृच्छयाश्रुपरान्पुरीपरिसरे पौरान्समस्ताननु । राज्योद्धारनयप्रचारविधये मंत्रीश्वरः शिक्षयंस्तेजःपालमसावदः समलसद्यानस्थितः प्रस्थितः ॥४७॥
व०वि० सं०१४ पृ० ७७-७८ प्र. को० पृ०१२७ । रा०मा० भा० २१०४६३,४६४ । महामात्य वस्तुपाल का स्वर्गारोहण वि० सं० १२६८ में पु० प्र० सं० पृ०६८।व० च० प्रस्ताव ८, पृ०१३० श्लो० ४२ । लिखा है।
उक्त सर्व ग्रंथ रचनाकाल की दृष्टि से महामात्य वस्तुपाल के पीछे के हैं और 'वसंतविलास' नामक नाटक की रचना महामात्य वस्तुपाल के पुत्र जैत्रसिंह के विनोदार्थ वस्तुपाल के समाश्रित तथा समकालीन कवि बालचन्द्रसरिकृत है, अतः यह ग्रंथ अधिक प्रमाणित है। (A) Mr. T. M. Tripathi B. A. informs that he has found the following dates of the deaths of
the two brothers in an old leaf of a paper ms. 'सं०१२६६ महं० वस्तुपालो दिवंगतः। सं० १३०४ महं०
तेज पालो दिवंगतः। (B)
ao fào Introduction P. VIII 'स्वस्ति सं० १२६६ वर्षे वैशाख शुदि ३ श्रीशत्रुजयतीर्थे महामात्यतेजःपालेन कारित' प्रा०जैल ० सं० ले०६६
व०वि० Introduction P.XI वि० सं० १६५ में महाराणक वीरधवल की मृत्यु हुई और वि० सं० १२६६ में महामात्य की। इस एक वर्ष के काल में वीरमदेव का युद्ध, डाहलेश्वर का युद्ध और वीशलदेव का राज्यारोहण और फिर ऐसी स्थिति में महाबली, पराक्रमी, यशस्वी, धर्मात्मा, न्यायशील महाप्रभावक महामात्य वस्तुपाल को पदच्युत करने की कथा और उसके कतिपय बार अपमानों की वार्ता और वे भी वीशलदेव के द्वारा जो अभी नवशासक है और जिस स्वयं के ऊपर महामात्य के अनंत उपकार हैं, महामात्य के प्रभाव से ही जिसको राज्यगद्दी प्राप्त हुई है- कल्पित और पीछे से जोड़ी हुई हैं। फिर भी प्रसिद्ध २ अपमानजनक घटनाओं का उल्लेख चरणलेखों में कर देता हूँ।