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________________ :: मंत्री भ्राताओं का गौरवशालीः गूर्जर मंत्री वंश और सर्वेश्वर महामात्य वस्तुपालः: समस्तगूर्जरभूमि में अब सुराज्यव्यवस्था जम गई थीं। निरु कुरा ठक्कुर, सामंत, माण्डलिक पुनः पत्तन अधीनता स्वीकार कर चुके थे । धवल्लकपुर अब पूर्णरूपेण गुर्जर भूमि का राजनगर बन चुका था । वस्तुपाल ने भी अपना निवास अत्र धवलकपुर में ही स्थायीरूप से बना लिया था । अराजकता का नाश करने में, निरु कुश ठक्कुर, सामंत, माण्डलिकों को वश करने में, अभिनवराजतंत्र के संस्थापकों को लगभग तीन वर्ष से ऊपर समय लगा अर्थात् वि० सं० १२७६ तक यह कार्य पूर्ण हुआ । श्रत्र महामात्य के आगे प्रमुखतः समीपवर्त्ती दुश्मन राजाओं से गूर्जर भूमि की सतत् रक्षा करने का कार्य तथा गुर्जर भूमि को समृद्ध बनाने का कार्य था । ये कार्य पहिले के कार्यों से भी अधिकतम कठिन एवं कष्टसाध्य थे । अतः मंत्री भ्राताओं ने धवल्लकपुर में ही राणक और मडलेश्वर के साथ में रातदिन रह कर राज्य की सेवा करना अधिक अच्छा समझा । अतः महामात्य वस्तुपाल ने वि० सं० १२७६ में अपने स्थान पर अपने योग्य पुत्र जेत्रसिंह को खंभात का प्रान्तपति बना कर खंभात का राज्यकार्य करने के लिये भेज दिया और आप वहीं रहकर अभिनव राजतंत्र का सुचारुरूप से संचालन करने लगा । खड ] [ १३७ जैसी ख्याति महामात्य वस्तुपाल और तेजपाल की बढ़ रही थी, उसी प्रकार महामंडलेश्वर लवणप्रसाद भी गूर्जर - भूमि के अजेय योद्धा और सुपुत्र समझे जाते थे। राणक वीरधवल भी प्रजा - वत्सलता, वीरता और अनेक दिव्य गुणों के राज्य-व्यवस्था और गुप्तचर- लिये प्रसिद्ध था । राजगुरु महाकवि सोमेश्वर धवल्लकपुर की पुरुषोत्तम व्यक्तियों की विभाग का विशेष वर्णन माला में सचमुच सुमेरुमणि थे । राजसभा में आये दिन दूर-दूर से प्रसिद्ध विद्वान् श्रते । थे और राणक वीरधवल भी उनका यथोचित आदर-सत्कार करता था । राणक वीरधवल शैव था, फिर भी जैनधर्म और जैनाचार्यों का बड़ा सत्कार करता था । महामात्य वस्तुपाल के प्रत्येक धर्मकृत्य में दोनों पिता-पुत्र का सहयोग और सम्मति रहती थी । यहाँ तक कि महामात्य वस्तुपाल को बिना पूछे राज्य के कोष में से धर्मकार्यों के लिये द्रव्य - व्यय करने की पूर्ण स्वतन्त्रता थी । महामात्य वस्तुपाल ने राज्य की व्यवस्था अनेक विभाग और उनकी अलग २ समितियाँ बनाकर की थीं । सेना-विभाग और गुप्तचर-विभाग हर प्रकार से विशेषतः समृद्ध और पूर्ण रक्खा जाता था । मालगुजारी का विभाग भी प्रति समुन्नत था । भूमि- कर लेने की व्यवस्था इतनी अच्छी की गई थी कि कोई भी राजकर्मचारी कृषकों से उत्कोच और राज्य का पैसा नहीं खा सकता था । न्याय यद्यपि अधिकतर जबानी किये जाते थे, लेकिन महामात्य जैसे पुरुषोत्तम के लिये राव-रंक का रंगभेद अकृतकार्य था । सर्व धर्म, वर्ण और ज्ञातियों को सामाजिक, धार्मिक क्षेत्रों में पूर्ण स्वतन्त्रता ही नहीं थी, बल्कि राज्य की ओर से यथोचित मान और सहयोग भी प्राप्त था । संरक्षकविभाग का कार्य भी कम स्तुत्य नहीं था। चोर, डाकू, ठगों और गुण्डों का एक प्रकार अन्त ही कर दिया गया था । गूर्जरराजधानी पत्तनपुर का सारा राज्यकार्य धवल्लकपुर में होता था । महामण्डलेश्वर लवणप्रसाद और राणक वीरधवल के हाथों में गूर्जरसाम्राज्य की सारी शक्तियाँ और अधिकार केन्द्रित थे, फिर भी इन्होंने कभी भी अपने को स्वतन्त्र महाराजा या सम्राट् घोषित करना तो दूर रहा, करने का स्वप्न में भी विचार नहीं किया । 'महामात्य श्रीवस्तुपालस्यात्मजे महं० श्रीललितादेवी कुक्षि सरोवरराजहंसायमाने महं० श्रीजयन्तसिंह सं० ७६ वर्ष पूर्व स्तम्भतीर्थे मुद्रा व्यापारं व्यापृण्वति सति' प्रा० जै० ले० सं० भा० २ ले० ३८ से ४३
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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