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________________ १३६ ] :: प्राग्वाट इतिहास :: [ द्वितीय सैन्य बनाई, जो अनेक युद्धों में तेजपाल के साथ दुश्मनों से लड़ी और जिसने गूर्जर भूमि की भविष्य में संकटापन्न स्थितियों में प्रबल सेवायें की । भद्रेश्वरनरेश भीमसिंह को परास्त करके तथा उसको अपना सामन्त बना करके राणक वीरधवल अपनी विजयी सैन्य एवं मन्त्री भ्राताओं और मण्डलेश्वर के साथ में काकरनगर को पहुँचा और वहाँ कतिपय दिवसपर्यन्त ठहर कर उस प्रान्त में लूट-खसोट करने वाले डाकुओंों को बंदी बनाया और उदंड बने हुए ठक्कुरों की निरंकुशता को कुचल कर प्रजा में सुख और शान्ति का प्रसार किया । महामात्य वस्तुपाल ने अपना विचार मरुधरदेश की ओर बढ़ने का राणा के समक्ष रक्खा । फलतः राणक वीरधवल और दंडनायक तेजपाल यादि धवल्लकपुर लौट आये और महामात्य वस्तुपाल कुछ दिवस पर्यन्त काकरनगर में ही ठहर कर मरुधरप्रदेश की ओर बढ़ा । महामात्य वस्तुपाल का मरुघरदेश में श्रागमन और कार्य महामात्य वस्तुपाल का यह नियम-सा हो गया था कि वह जिस ग्राम में होकर निकलता था, वहाँ अवश्य कोई मन्दिर बनवाता था और जिस मार्ग में, जंगल में होकर निकलता वहाँ कुआ, बाव अथवा प्याऊ का निर्माण करवाता था । उसने इस विजय यात्रा में निम्नवत् पुण्य कार्य करवाये थे: १ काकरनगर में श्री आदिनाथ जिनालय बनवाया । २ भीमपल्ली में श्री पार्श्वनाथ - जिनालय बनवाया । महादेव और पार्वती का श्री राणकेश्वर नामक शिवालय बनवाया । ३ जेरंडकपुर में विविध जिनालय बनवाये । ४ वायग्राम में श्री महावीर जिनालय का जीर्णोद्धार करवाया । ५ सूर्यपुर में श्री सूर्यमन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया । वेदपाठ के निमित्त ब्रह्मशालायें, दानशालायें बहुत द्रव्य व्यय करके बनवाई' । महामात्य काकरनगरी से अपनी विजयी सैन्य के सहित मरुधरप्रदेश की ओर बढ़ा। मार्ग में ग्रामों में, नगरों में मन्दिर बनवाता हुआ, जंगलों में एवं थरपारकर प्रदेश (रेगिस्थान) में कुएं, बाव बनवाता हुआ, प्रपायें लगवाता हुआ साचोरतीर्थ में पहुँचा । थराद में महामात्य ने अनेक धर्मकृत्य किये थे, अनेक मन्दिरों का र्णोद्धार करवाया था और बहुत द्रव्य दान एवं अन्य धर्मकृत्यों में व्यय किया था। मार्ग के ग्राम एवं नगरों के ठक्कुर और सामंतों को वश करके पुष्कल द्रव्य एकत्रित किया था। जब वह साचोर पहुँचा, तब तक महामात्य के पास में पुष्कल द्रव्य एकत्रित हो गया था । साचोर में पहुँच कर महामात्य ने भगवान महावीरप्रतिमा के भक्तिपूर्वक दर्शन किये और सेवा-पूजा का लाभ लिया । साचोरतीर्थ के जीर्णोद्धार 'बहुत द्रव्य का सदुपयोग किया, दान और अन्य पुण्यकार्य किये । वह साचोर में कुछ दिवस पर्यंत ठहरा और समीपवर्त्ती भिन्नमालप्रगणा एवं बांगलभूमि के ठक्कुरों, सामंतों को वश करके उनसे पुष्कल द्रव्य भेंट में प्राप्त किया । साचोर से महामात्य पुनः लौट पड़ा और काकरनगर में पुनः होता हुआ राज्य और प्रजा का निरीक्षण करता हुआ अगणित धनराशि लेकर धवलकपुर में प्रविष्ट हुआ। महामात्य ने राजसभा में पहुँच कर राणक वीरधवल एवं मण्डलेश्वर को अभिवादन किया और मरुधरप्रदेश की विजययात्रा में प्राप्त पुष्कल धन को अर्पित किया । I
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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