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खण्ड ]
:: मंत्री भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री वंश और सर्वेश्वर महामात्य वस्तुपाल :
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महामात्य वस्तुपाल का राज्यसर्वेश्वरपद से अलंकृत होना ..
___ महामण्डलेश्वर लवणप्रसाद तथा युवराज वीरधवल दोनों पिता-पुत्र महामात्य वस्तुपालके गुणों से मुग्ध होकर राज्य के सर्वैश्वर्य को महामात्य के करों में वि० सं० १२७७ में अर्पित करके श्राप महामात्य की सम्मति के अनुसार राज्य का चालन करने लगे। वैसे तो वस्तुपाल महामात्य के पद पर वि० सं० १२७६ से ही आरूड़ हो चुका था, परन्तु युवराज वीरधवल की प्रीति से प्राप्त करके समस्त राज्य के सर्वैश्वर्य को प्रदान करने वाला सच्चा महामात्यपद उसने वि० सं० १२७७ में स्वीकृत किया समझना चाहिए।
___ जब राणक वीरधवल और महामण्डलेश्वर लवणप्रसाद तथा मन्त्री भ्राता गूर्जरप्रदेश की अराजकता का अन्त करने में लगे हुये थे और बाहर के दुश्मनों से गूर्जरभूमि की रक्षा करने में संलग्न थे। उनके इस संकटपूर्ण समय भद्रेश्वरनरेश भीमसिंह का लाभ उठाकर भद्रेश्वरनरेश भीमसिंह ने अपनी शक्ति बढ़ा ली और राणक वीरधवल पर विजय
की आज्ञा मानने से इन्कार कर दिया। राणक वीरधवल ने भद्रेश्वरनरेश को परास्त करने के लिये एक सेना भेजी, परन्तु वह परास्त होकर लौटी। जाबालिपुरनरेश चौहान उदयसिंह के तीन दायाद भ्राता सामंतपाल, अनंतपाल और त्रिलोकसिंह जो प्रथम वीरधवल की सेवा में उपस्थित हुये थे, महामात्य वस्तुपाल के बहुत कहने पर भी राणक वीरधवल ने वेतन अति अधिक माँगने के कारण नहीं रक्खे थे, जाकर भद्रेश्वरनरेश भीमसिंह के समक्ष उपस्थित हुये और भीमसिंह ने उनको मुंहमाँगा वेतन देकर रख लिया । ये तीनों भ्राता अत्यन्त बली एवं रणनिपुण थे। भद्रेश्वरनरेश इनका बल पाकर अधिक गर्वोन्नत हो उठा। राणक वीरधवल को चौहान वीरों को निराश एवं तिरस्कृत कर लौटाने का अब फल प्रतीत हुआ । क्रोध में आकर वीरधवल अकेला सैन्य लेकर वि० सं० १२७८ में भद्रेश्वरनरेश पर चढ़ चला, महामण्डलेश्वर लवणप्रसाद भी संग में गये । धवल्लकपुर में शासन की सुव्यवस्था करके पीछे से महामात्य वस्तुपाल और दण्डनायक तेजपाल भी अति चतुर रणवाँकुरे योद्धाओं के साथ जा पहुंचे। ___भद्रेश्वरनरेश और वीरधवल में अति घोर संग्राम हुआ और वीरधवल आहत होकर रणभूमि में गिर पड़ा। ठीक उसी समय मंत्री भ्राता भी अपने वीर योद्धाओं के साथ रणक्षेत्र में जा पहुँचे । सायंकाल का समय हो चुका था, दोनों ओर की सेनायें समस्त दिनभर भयंकर युद्ध करती हुई थक भी गई थीं और विश्राम चाहती थीं। भद्रेश्वरनरेश के योद्धाओं ने मन्त्री भ्राताओं का ससैन्य आगमन सुनकर साहस छोड़ दिया तथा भद्रेश्वरनरेश से कहने लगे कि राणक वीरधवल के साथ संधि करना ही श्रेयस्कर है । भद्रेश्वरनरेश भीमसिंह ने भी कोई उपाय नहीं देखकर तुरन्त राणक वीरधवल की अधीनता स्वीकार कर ली और सामन्तपद स्वीकार किया। शनैः शनैः भीमसिंह की शक्ति कम की गई और उसकी मृत्यु के पश्चात् भद्रेश्वर का राज्य पत्तन-साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया गया और भीमसिंह के चौदह सौ राजपुत्र वीर योद्धाओं से तेजपाल ने अपनी अति विश्वासपात्र सहचारिणी
'सं० ७७ वर्षे श्रीशत्रयोज्जयन्तप्रतिमहातीर्थयात्रोत्सवप्रभावाविर्भूतश्रीमदेवाधिदेवप्रसादासादितसंघाधिपत्येन चौलवयवुलनभस्तलप्रकाशनकमार्तण्डमहाराजाधिराजश्रीलवणप्रसाददेवसुतमहाराजश्रीवीरधवल देवप्रीतिप्रतिपन्नराज्यसर्वैश्वर्येण श्रीशारदाप्रतिपन्नापत्येन महामात्य श्रीवस्तुपालेन तथा अनुजेन सं०७६ वर्ष पूर्व गूर्जरमण्डले धवल ककप्रमुखनगरेषु मुद्राव्यापारान् व्यापूरावता' प्रा० ० ले० सं०भा०२ले० ३८-४३