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:: मंत्री भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री वंश और. श्री सिद्धाचलादि तीर्थों की प्रथम संघयात्रा । । १२६
में पहुँचा । साथ में दंडनायक तेजपाल भी था। दोनों प्राता सविनय, सविधि, सादर गुरुवन्दन करके मनधारी गुरुनरचन्द्रसरि के आगे बैठे और महामात्य वस्तुपाल ने अपने विचार प्रदर्शित किये कि भगवन् ! ऐसा मार्ग बताइये कि जिससे मैं पुण्योपार्जन कर सद्गति प्राप्त कर सकूँ । श्रीमद् नरचन्द्रसरि ने अपने व्याख्यान में सम्यक्त्व तथा सिद्धाचलजी की यात्रा का माहात्म्य समझाया । महामात्य वस्तुपाल एवं दंडनायक तेजपाल दोनों भ्राताओं ने बहु व्यय करके अपूर्व संघभक्ति की तथाः सधार्मिक वात्सल्य एवं उद्यापन करवाया और सिद्धगिरि की संघयात्रा करने का संकल्प कर श्रीमद् नरचन्द्रसूरि गुरु से संघ के अधिनायक श्राचार्य बनने की प्रार्थना की । परन्तु नरचन्द्रमरि ने यह कह कर अस्वीकार किया कि तुम्हारे मलधारीगच्छ के प्राचार्य मातृपक्ष से गुरु हैं और पितृपक्ष से गुरु नागेन्द्रगच्छ के आचार्य हैं । नागेन्द्रगच्छीय विजयसेनमरि मरुप्रदेश में विचरण कर रहे हैं। उनको ही बुलाना चाहिए, ऐसा करना ही मर्यादासंगत है।
महामात्य वस्तुपाल ने यह प्रथम चतुर्विध संघयात्रा सं० १२७७ में निकाली । इस संघयात्रा के अधिनायक आचार्य कुलगुरु नागेन्द्रगच्छीय श्रीमद् विजयसेनसरि अपने अनेक शिष्यों के साथ थे। अन्य कई विश्रुत आचार्य, साधु एवं साध्वी भी इस संघयात्रा में सम्मिलित हुये थे, जिनमें अति प्रसिद्ध आचार्य मलधारीगच्छीय नरचन्द्रसूरि, वायटगच्छीय जिनदत्तसूरि, संडेरकगच्छीय शान्तिसूरि, गल्लक-कुलीय कर्द्धमानसूरि थे । संघपति स्वयं वस्तुपाल था । दंडनायक तेजपाल साम्राज्य का संचालन करने के लिये धवल्लकपुर में ही रहा । लाट, खम्भात, पत्तन, कच्छ, मरुदेश, मेदपाट आदि अनेक प्रान्त, नगरों एवं प्रदेशों से आकर स्त्री-पुरुष इस संघ-यात्रा में सम्मिलित हुए थे। 'रलदपेण सहकान्त .............................."ए पलितमालोan .......
............."एक पलितमालोक्य,...................॥२३॥ 'इत्यालोचे : स्वयं चित्ते, संवेगरसपूरितः। धर्मकार्योद्यमं सम्यग ,कर्तु कामो विशेषतः॥१४॥ ... 'आगम्य धर्मशालाया, ततोऽसौ बन्धुभिः समम् । ववन्दे भक्तिरंगेण, नरचन्द्रगुरोः पदौ ॥१५॥ व० च० प्र०५ पृ० ६२ 'श्रुत्वैवं सद्गुरोर्वाचः। सम्यक्तत्त्वसुधामुचः। "वात्सल्यमुच्चेविदधे विधिज्ञः' ॥६५, ६८॥
व० च० प्र०५ पृ०६६ 'श्रीनागेन्द्रगणाधीशा, विजयसेनसरयः कुलक्रमागताः सन्ति, गुरवो वो गुणज्ज्वला ॥४॥ 'गुरवस्तव मंत्रीश मातृपक्षगताः पुनः । मलधारिंगणाचारधुरंधर पुरस्कृताः' ।।५।। 'पाहूय बहुमानेन ततस्तानमुनिपुङ्गवान् ॥८॥
बच० प्र०६ पृ०८० ..."""वयं ते मातपक्षे गुरवः, न पितृपक्ष । पितृपक्षे तु" "विजयसेनसरयः "पिलूआइदेशे (जिस देश में पीलू अधिक होते हैं, वह देश अर्थात् मरुप्रदेश) वर्तन्ते । ते वासनिक्षेपं कुर्वन्तु न वयम् ।।
प्र० को०२४ व०प्र०१३६)पृ०११३ 'एकाङ्गिमेकं सुरमुत्तरन्तं दिवो ददर्शाऽतिशयैः स्फुरन्तम् । मण्डलाधिपतिभिश्चतुभिरावासितं नृपनिदेशितैरिह' ॥२४॥ 'लाटगौडमरुडाहलावन्तिबङ्गविषयाः समन्ततः। तत्र संघपतयः समायुयुस्तोयधाविव समस्तसिन्धवः ॥२५॥ 'संघराट् बलभिपत्तनावनीमण्डलेऽतिसुरमण्डलेश्वरः। उत्प्रयाणकमचीकरत् कृती संघलोकसुखदप्रयाणकः' ॥४२॥ 'अङ्गलीकिसलयाप्रसंज्ञया दर्शितो (विमलगिरि) विजयसेनसरिभिः ॥४३॥
व०वि० स०१० 'महामात्य! १२७६ एष संवत्सरोऽतिनीतः (Ps तीवः)। समयवशेन वर्ष २८ श्रीशत्रुम्जय-गिरिनारयोर्वम केनापि न वाहितम् । [Ps मन्त्रीपदं विना मण्डली वार मेकं गतः नापरः। तत्र यात्रार्थे यतनीयमिति' । पृ०५८
'अथ चलितः सुशकुनः संघः। मार्गे सप्तक्षेत्राण्युद्धरन् श्रीवर्धमानपुरासचमावासितः। तदा "बहुजममाभ्यः श्रीमान् रखनामा श्रावको वसति । तद्गेहे दक्षिणावर्चः शंखः पूज्यते । प्र० को० पृ०११४
'प्र०को में वर्णित संघयात्रा 'व०च' में वर्णित संघयात्रा से वर्णित वस्तु में अधिक अंशों में मिलती है। 'अथ सं०१२७७.वर्षे सरस्वतीकण्ठाभरण-लघुभोजराज-महाकवि महामात्यश्रीवस्तुपालेन महायात्रा प्रारंभ।