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:: मंत्री भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री-बंश और मंत्री अश्वराज और उसका परिवार .
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अश्वराज अपनी विधवा माता सीतादेवी के साथ सोहालकलाम में ही रहता था । कुमारदेवी की कुक्षि से क्रमशः लुभिय, मल्लदेव, वस्तुपाल, तेजपाल नामक चार महातेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुए तथा क्रमशः जाल्ह, माउ, साऊ.
धनदेवी, सोयगा, वयज और पद्मल या पदमला ये सात पुत्रियाँ उत्पन्न हुई। अश्वराज का गार्हस्थ्य-जीवन
' अस्वराज और कुमारदेवी का विवाह मूर्जरसम्राट् भीमदेव द्वितीय के राज्यारोहण के? करना चाहिए के प्रश्न को लेकर समस्त जैनममाज में दो मत चल रहे थे। विरोध करने वालों की संख्या अधिक थी और पक्ष में बोलने वालों की कम और इसी कारण से संभवतः उनके दल बृहत्शाखा और लघुशाखा वर्ग कहलाये । कुमार देवी विधवा थी के भाष की सक्ष्य रेखा कच० और की कौ० में भी मिलती है। परन्तु उनका अर्थ भी विचारणीय है, एकदम मान्य नहीं।
'ततः सरिव्यादिष्टदेवतादेशतोऽभवत् । भार्या कुमारदेवीति, प्रथिता तस्य मन्त्रिणः ॥५॥ अनया प्रियया मन्त्री, श्रियेव पुरुषोत्तमः। लेभे सुमनसा मध्ये, ख्याति लोकातिशायिनीम् ॥६॥ मातुः पितुच पत्युश्च, कुलत्रयमियं सती । गुणैः पवित्रयामास, जाह्नवीव जगत्त्रयम् ॥६॥ तामादाय स्फुरद्भाग्यभङ्गी स्वस्याङ्गिनीमिव । समं स्वपरिवारेण स्वजनानुमतेस्ततः॥१२॥ प्रसन्नेन क्रमादत्ते, भूभा चुलकोद्भवा । अश्वराजो व्यधाद्वासं, पुरे महालकाभिधे ॥६३"
व० च० प्रस्ताव १ पृ० २ समय को जानने वाले, अवसर को पहचानने वाले, दीन और दुखियों के सहायक पतितों के उद्धारक को ही तो पुरुषोत्तम कहा जाता है-ग्रन्थकर्ता ने अश्वराज के इन गुणों से मुग्ध होकर ही संभवतः उसको 'पुरुषोत्तम' कहा है। 'प्राक्कृता रेणुकाबाधा स्मरन्ननुशयादिव । मातुर्विशेषतश्चके भक्तिं यः पुरुषोत्तमः ॥२०॥
की कौ० स०३ पृ०२२ 'प्राकृतं रेणुकाबन्धं स्मरननुशयादिव। मातुर्विशेषतश्चके भक्ति यः पुरुषोत्तमः ॥६०॥'
व० च० प्र०१ पृ०३ व० च० के कर्ता जिनहर्षगणि ने की० कौ० में से उक्त श्लोक को अपनी रचना में कैसे समाविष्ट किया-यहाँ यह विवाद नही छेड़ना है। तात्पर्य इससे इतना ही लेना है कि वह कौनसी भावना है, जिससे प्रेरित होकर उन्होंने ऐसा किया। जहाँ की० को. के कर्चा ने उक्त श्लोक को अश्वराज की महिमार्थ लिखा है, वहाँ व० च० के कर्ता ने वस्तुपाल की महिमार्थ इसका उपयोग किया है। विचारणीय बात जो है वह यह कि रेणुका जैसी अपमानिता स्त्री का स्मरण यहाँ क्यों आया। दोनों ग्रन्थों की रचनाधारा को देखते हुये उक्त प्रसंग ठूसा हुआ प्रतीत होता है। फिर ऐसे सफल ग्रन्थकर्ताओं के हाथों यह हुआ है इसमें कुछ रहस्य है । विशेषतः और 'पुरुषोत्तमः शब्दों के प्रयोगों का भी कोई गुप्त अर्थ है। मेरी समझ में जो पाता है वह यह है कि परशुराम-अवतार में जो माता रेणुका का पिता की आज्ञा से वध किया गया था, उसी का भाशराज तथा वस्तुपाल-अवतार में विधवा स्त्री से विवाह करके तथा पुनर्लमछता माता की अत्यन्त सेवा करके प्रायश्चित्त किया गया। उक्त ग्रन्थकर्ताओं ने खुले शब्दों में पुनर्लग्नप्रसंग का वर्णन नहीं कर अलंकारों की सहायता से उसे ग्रन्थित किया है। फिर भी मेरा इन श्लोकों से उक्त आशय निकालने में यही मत है कि अन्य विद्वानों की जब तक ऐसी ही मिलती हुई सम्मति नहीं प्राप्त हो उक्त आशय को उपयुक्त नही माना जाय।
१-१० प्रा० ० ले० सं०भा० २ लेखांक २५०
" " " " ३२५, २८, ३३०-३१, ३३७
'सं०१२४६ वर्षे संघपति स्वपित ठ० श्री आशराजेन समं महं० श्री वस्तुपालेन श्री विमलाद्रौ रैवते.च यात्रा कृता । सं०५० वर्षे तेनैव सम स्थान द्वये यात्रा कृता ।' Waston Museum, Rajkot
[व०वि० प्रस्ताव० चरणलेख पृ०११] चारों भाईयों एवं सातो बहिनों के जन्म-संवतों का अनुमानः'महं० श्री जयंतसिंहे सं०७६ वर्ष पूर्व स्तम्भतीर्थ मुद्राव्यापारान् व्यापृण्वति'-गि० प्र०
- उक्त पंक्ति पर विचार करने से जयंतसिंह की आयु सं०१२७६ में लगभग १८-२० वर्ष की तो होनी ही चाहिए। तब वस्तुपाल का विवाह लगभग वि० सं०१२५६-५८ में हुमा होना चाहिए और तेजपाल का विवाह सं०१२६० तक तो हो ही गया होगा।