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:: प्राग्वाट - इतिहास :
[ द्वित्तीय
अपनी माता सीता के साथ उसने शत्रुंजय और गिरनास्तीर्थों की सात यात्रायें कीं । इस प्रकार उसने पूर्वजों के द्वारा संचित सम्पत्ति का सदुपयोग किया । इन्हीं दिव्य गुणों के कारण वह पुरुषोत्तम कहलाया । उसका विवाह कुमारदेवी से हुआ ।२ कुमारदेवी एक परम रूपवती एवं गुणशालिनी स्त्री थी । वह चौलूक्य सम्राट् भीमदेव द्वि० के दण्डाधिपति श्रीमालज्ञातीय आभू की स्त्री लक्ष्मीदेवी की कुक्षी से उत्पन्न हुई थी।
१०. संसर्ग ३ पृ० २५. श्लोक ५१ से ५३
व० च प्रस्ताव १ पृ० १ श्लोक ३१ से ३६ ५० २ श्लोक ६३ न० ना० नं० सर्ग १६ पृ० ६० श्लोक २१ से २६
ह० म० म० परि०: ३ पृ० ८२ श्लोक १०७ से ११० (सु की० क०) की ० कौ० पृ० २२-२३ श्लोक १७ से २२ ( मन्त्री - स्थापना )
* दण्डाधिपति श्रभू का वंश ( सामन्तसिंह )
1
शान्ति
I
ब्रह्मनाग
1
आमदत्त
1
नागड़
श्रभू
[ लक्ष्मीदेवी ] 1
कुमारदेवी
२ - 'कुमारदेवी बाल विधवा थी और अश्वराज के साथ उसका पुनर्लन हुआ था यह जनश्रुति अधिक प्रसिद्ध है' व० च० में पृ० १ श्लोक ३१ में उसको प्रा० ज्ञा० दण्डेश प्रभू की पुत्री होना लिखा है; परन्तु दण्डेश प्रभू प्रा० ज्ञातीय नहीं था; वरन् श्रीमालज्ञातीय था - यह अधिक माना गया है । वस्तुपाल के समकालीन आचार्यों, लेखकों एवं कवियों की कृतियों में जिनमें 'सुकृत संकीर्तनम्', 'हमीरमदमर्दन', नर-नारायणानन्द, वसन्त विलास, धर्माभ्युदय अधिक विश्रुत हैं और ये सर्व ग्रंथ स्वयं वस्तुपाल तेजपाल के विषय में ही लिखे गये हैं— में ऐसा कोई उल्लेख कहीं भी नहीं दिया गया है जो कुमारदेवी को बाल-विधवा होना कहता हो और अश्वराज के साथ उसका पुनर्लग्न होना चरितार्थ करता हो । जनश्रुति अगर सच्ची भी हो तो भी अश्वराज का जीवन उससे उठता ही है यह निर्विवाद है ।
मेवाड़ के महाराणाओं का राजवंश अपने कुल की उज्ज्वलता एवं यश, कीर्त्ति, गौरव, प्रतिष्ठा के लिये भारतवर्ष में ही नहीं, जगत् में अद्वितीय है। महाराणा हमीरसिंह का विवाह मालवदेव की बाल विधवा पुत्री के साथ हुआ था। चाहे उक्त विवाह छल-कपट से सम्पन्न हुआ हो । परन्तु उक्त विवाह से महाराणाओं के वंश की मान-प्रतिष्ठा में उस समय या उसके पश्चात् भी कोई कमी प्रतीत हुई हो, इतिहास नहीं कहता है। सो तो उस समय के राजपूत विधवा-विवाह को अति घृणित एवं अपमानजनक मानते थे । मालवदेव की विधवा पुत्री ने अपने प्रथम पति का सहवास प्राप्त करना तो दूर, मुख तक भी नहीं देखा था। ऐसी अनवद्योगी बाल विधवा का उद्धार कर गौरवशाली वंश में उत्पन्न हमीर ने साधारण समाज के समक्ष अनुकरणीय आदर्श रक्खा ।
अश्वराज भी तो गौरवशाली मन्त्रीकुल में ही उत्पन्न हुआ था। वह उन्नत विचारशील था और कुमारदेवी भी अनवद्योगी बाल-विधवा थी। वह रूपवती और महागुणवती थी परन्तु अश्वराज कुमारदेवी पर इन गुणों के कारण मुग्ध नहीं हुआ था । श्रश्वराज कुमारदेवी के साथ पुनर्लग्न करने को क्यों तैयार हुआ, वह प्रसंग इस प्रकार है :
" कदाचिच्छ्रीमत्पत्तने भट्टारकश्री हरिभद्रसूरिभिर्व्याख्यानावसरे कुमारदेव्यभिधाना काचिद्विधवातीव रूपवती [बाला ] मुहुर्मुहुर्निरीक्ष्यमाणा तत्रस्थितस्याशराजमन्त्रिणश्चित्तमाचकर्ष । तद्विसर्जनानन्तरं मन्त्रिणानुयुक्ता गुरव इष्टदेवतादेशाद् - 'अमुष्या कुक्षौ सूर्याचन्द्रमसोर्भाविनमवतारं पश्यामः । तत्सामुद्रिकानि भूयो भूयो विलोकितवन्तः' इति प्रभोर्विज्ञाततत्त्वः स तामपहृत्य निजी प्रेयसी कृतवान् ।” प्र० चि० पृ० ६८ (वस्तुपाल - तेजपाल प्रबन्धः १० ) अन्तरज्ञातीय विवाह करने के विरोधियों को प्राज्ञा० श्रश्वराज का विवाह श्री०ज्ञा दण्ड० श्रभू की पुत्री कुमारदेवी के साथ होना बुरा लगा हो और पीछे से विधवा होने का प्रबन्ध जोड़ दिया हो-सम्भव लग सकता है। कारण कि उन दिनों में अपने वर्ग में ही कन्या - व्यवहार