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:: प्राग्वाट - इतिहास ::
[ द्वितीय
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समय जो वि० सं० १२३५ में सम्पन्न हुआ के लगभग ही हुआ होगा । अश्वराज ने सम्वत् १२४६, १२५० में अपनी विधवा माता सीतादेवी के साथ में शत्रुंजय और गिरनारतीर्थों की यात्रायें कीं। इन यात्राओं में लूणिग, मल्लदेव वस्तुपाल भी साथ में थे और चौथा पुत्र तेजपाल शिशु अवस्था में था । अश्वराज ने चारों पुत्रों को अच्छी शिक्षा दिलवाई | सातवीं पुत्री पद्मल के जन्म के आस-पास ही ठ० श्रश्वराज की मृत्यु हो गई । १ कुमारदेवी विधवा हो गई। विधवा कुमारदेवी सोहालकग्राम को छोड़कर मंडिलकपुर में जा रही और वहीं अपने जीवन के शेष दिन बिताने लगी ।२ वस्तुपाल का मन पढ़ने में अधिक लगता था । और फलतः वह अधिक
युपर्यन्त पत्तन में विद्याध्ययन करता रहा । प्रथम पुत्र लूशिग का भी निस्सन्तान अल्पायु में ही शरीरान्त हो गया । ३ मल्लदेव जो द्वितीय पुत्र था वह भी एक पुत्र पुण्यसिंह और दो पुत्रियाँ सहजल और पद्मल को छोड़ कर स्वर्ग सिधार गया ।४ दोनों पुत्रों की असामयिक मृत्यु से विधवा कुमारदेवी को भारी धक्का लगा। कुमारदेवी भी वि० सं० १२७१-७२ के आस-पास स्वर्ग सिधार गई । ५
कुछेक वर्णन ऐसे भी मिले हैं, जिनसे तेजपाल का विवाह वस्तुपाल के विवाहित होने से पूर्व होना प्रतीत होता है। लूणिग और मल्लदेव वस्तुपाल के विवाहित होने से पूर्व ही विवाहित हो चुके थे ।
० १२४६ में तेजपाल शिशु अवस्था में था और स० १२५६-५८ में वस्तुपाल का विवाहित होना अनुमान किया जा सकता है, तब वस्तुपाल का जन्म संवत् वि० सं० १२४२-४४ सिद्ध होता है । इस प्रकार लुणिग का सं० १२३८-४०, मल्लदेव का १२४०-४२ और तेजपाल का १२४४-४६ जन्म-संवत् ठहरते हैं। इसी प्रकार दो-दो वर्षों के अन्तर से सातों बहिनों के जन्म संवतों को भी माना जाय तो अन्तिम पुत्री पद्मल का जन्म वि० सं० १२५८-६० में हुआ होना ठहरता है । यह अनुमानशैली अगर उपयुक्त जचती है तो कुमार देवी का पुनर्लग्न या विवाह वि० सं० १२३५ में हुआ होना ही अधिक सत्य है ।
१ - पद्मल की जन्मतिथि के पश्चात् ऐसा कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं होता है, जिसके आधार पर यह कहा या माना जा सकता हो कि ठ०वराज अधिक समय तक जीवित रहे ।
अधिकतर विद्वान् यही मानते हैं कि लूलिंग की मृत्यु के समय अश्वराज अनुपस्थित थे। लूगिंग की मृत्यु उसके निःसंतानस्थिति में हुई । इस मत के आधार पर लूगिंग की मृत्यु वि० सं० १२६१-६२ के आस-पास हुई। तब उ० अश्वराजकी मृत्यु का काल सं० १२६० के आस-पास माना जाय तो कोई अनुपयुक्त नहीं।
२ - 'त्यत्का तातवियोगातिंपिशुनं तत्पुरं ततः । सुकृत श्रेणितननी ( जननी) जननीं जननीतिवित् ॥८४॥ वस्तुपाल समादाय, विदधे बन्धुभिः समम् । मण्डलीनगरे वासं भूमिमण्डलमण्डने ॥ ८५ ॥
व० च० प्र० १ पृ० ३
३ - ४ - लूणिग की मृत्यु को मल्लदेव की मृत्यु से पीछे हुई मानना सर्वथा अनुपयुक्त है। लूगिंग अल्पायु में ही निस्संतान मर गया यह अधिक मान्य है और मल्लदेव जो लूगिंग से छोटा था, एक पुत्र और दो पुत्रियाँ छोड़ कर मरा है अवश्य लूलिंग के शरीरात होने के पश्चात् मृत्यु को प्राप्त हुआ है।
५ - वि० सं० १२७३ में वस्तुपाल तेजपाल ने स्वर्गस्थ पिता, माता के श्रेयार्थ शत्रुञ्जय एवं गिरनार तीर्थों की यात्रा की थी। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इसी संवत् के पूर्व या इसी के आस-पास कुमारदेवी स्वर्गस्थ हुई ।