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________________ १०४ ] [ द्वितीय 4 वह बढ़ते बढ़ते सना कोटि रुपयों तक पहुंच गई । ली होने पर कोटि की बोली बोलावे काले सज्जन को खड़ा करने की सम्राट् महं० बागभट को आज्ञा दी। थे वागभद के सम्बोधन पर मलीनवस्त्रधारी, दुर्बलगात, निर्धन -सा प्रतीत होता हुआ ० जगडू उठा । थे. जमडू की मुखाकृति एवं उसकी वेषभूषा को देखकर किसी को भी विश्वास नहीं हुआ कि वह इतना धनी होगा कि सवा कोटि रुपया दे सके । उसको देखकर कई हँसने लगे, कई उसका उपहास करने लगे और कई क्रोधित भी हो गये । स्वयं सूरीश्वर हेमचन्द्राचार्य्य और सम्राट् कुमारपाल भी विचार करने लगे । इतने में श्रे० जगडू ने मलीन वस्त्र की एक पोटली को खोलकर, उसमें से सवा कोटि मूल्य का एक जगमग करता माणिक निकाला और संघपति को अर्पित किया । संघसभा यह देखकर अवाक् रह गई। तत्पश्चात् श्रे० जगडू ने कहा कि उसका पिता धर्मात्मा हँसराज जब मरा था, तब वह यह कहकर मरा था कि सवा कोटि मूल्य का एक रत्न श्री शत्रुंजयतीर्थ पर, एक श्री गिरनारतीर्थ पर, एक श्री प्रभासतीर्थ में और दो उसके श्रेयार्थ लगा देना | स्वर्गस्थ पिता की अभिलाषा के अनुसार ही मैं यह एक रत्न यहाँ अ० आदिनाथ की प्रतिमा के मुकुट में लगाने के लिये दे रहा हूँ । यह सुनकर सभा अति हर्षित हुई और उसका धन्यवाद करने लगी । श्रे० जगडू के कथन पर माला उसकी विधवा माता मेधादेवी को पहनाई गई । श्रे० जगडू ने तत्काल स्वर्णमुकुट बनवा कर उसमें उक्त रत्न को जटित करवाया और अति आनन्द के साथ में वह मुकुट महामहोत्सवपूर्वक मूलनायक श्री आदिनाथ प्रतिमा को धारण करवाया गया । धन्य है ऐसे योग्य, धर्मात्मा श्रीमन्त पिता और पुत्र को, जिनके चरित्रों से यह इतिहास उज्ज्वल समझा जायगा । कु० प्र० प्र० पृ० ६७. 'मालोदघट्टन प्रस्तावे कण्ठाभरणं राजा कारयामास ।' :: प्राग्वाट इतिहास :: 'तेन जगन वणिजा तन्माणिक्यं हेम्ना खचित्वा ऋषभाय
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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