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खण्ड ]
:: महूअकनिवासी महामना श्र० हांसा और उसका यशस्वी पुत्र जगडू ::
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प्रसिद्ध लेखक से लिखवाकर और स्वहस्ताक्षरों से उसको प्रमाणित करके प्रसिद्ध किया। यह ताम्रपत्र श्री आदिनाथ - जिनालय भी विद्यमान है और महामात्य सुकर्मा और महाराज अल्हणदेव के यश एवं गौरव का परिचय दे रहा है । ऐसे प्रसिद्ध पुरुषों का समुचित परिचय प्राप्त करने का साधन-सामग्रियों का अभाव अत्यधिक खटकता है ।
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महूअकनिवासी महामना श्रे० हांसा और उसका यशस्वी पुत्र श्रे० जगडू
विक्रम की बारहवीं शताब्दी के अन्त में महूक (महुआ ) में प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० हांसा एक अति श्रीमन्त श्रावक हो गया है । वह जैसा धनी था वैसा लक्ष्मी का सदुपयोग करने वाला भी था । उसकी धर्मपत्नी जिसका नाम मेघारुदेवी था, बड़ी ही धर्मात्मा पतिपरायणा स्त्री थी । इनके जगडू नामक महाकीर्त्तिशाली पुत्र उत्पन्न हुआ । ० हांसा सम्पूर्ण आयु भर दान, पुण्य करता रहा और धर्म के सातों ही क्षेत्रों में उसने अपने द्रव्य का अच्छा सदुपयोग किया वह जब मरने लगा, तब उसने अपने आज्ञाकारी पुत्र जगडू को बुलाकर अपनी इच्छा प्रकट की और कहा कि उसने सवा-सवा कोटि मूल्य के जो पाँच रत्न उपार्जित किये हैं, उनमें से एक को श्रीशत्रुंजयतीर्थ पर भ० आदिनाथ प्रतिमा के लिये, एक श्री गिरनारतीर्थ पर श्री नेमिनाथप्रतिमा के लिये, एक श्री प्रभासपत्तन में श्री चन्द्रप्रभप्रतिमा के लिये और दो श्रात्मार्थ व्यय कर देना । श्रे० जगडू अपने धर्मात्मा पिता का धर्मात्मा पुत्र था । वह अपने कीर्त्तिशाली पिता की आज्ञा को कैसे टाल सकता था । उसने तुरन्त पिता को आश्वासन दिलाया कि वह पिता की आज्ञानुसार ही उन अमूल्य रत्नों का उपयोग करेगा । श्रे० हांसा ने पुत्र के अभिवचनों को श्रवण करके सर्वजीवों को क्षमाया और श्री आदिनाथ भगवान् का स्मरण करके अपनी इस असार देह का शुक्ल-ध्यान में त्याग किया।
श्रे० जगडू योग्य अवसर देख रहा था कि उन अमूल्य रत्नों का पिता की आज्ञानुसार वह उपयोग करें। थोड़े ही वर्षों के पश्चात् गूर्जर सम्राट् कुमारपाल ने अपना अन्तिम समय आया हुआ निकट समझ कर कलिकालसर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्राचार्य की आज्ञा से उनकी ही तत्त्वावधानता में श्री शत्रुंजयतीर्थ, गिरनारतीर्थ एवं प्रभासपत्तनतीर्थों की संघयात्रा करने के लिये भारी संघ निकाला, जिसमें गूर्जर - राज्य के अनेक सामन्त, राजा, माएडलिक, ठक्कुर, जैन श्रावक, संघपति दूर २ से आकर सम्मिलित हुये थे । श्रे० जगड़ भी अपनी विधवा माता के साथ में इस संघ में सम्मिलित हुआ था। संघ सानन्द श्री शत्रुंजयतीर्थ पर पहुँचा, संघ में सम्मिलित श्रावकों ने, अन्य जनों ने, आचार्य, साधुओं ने श्री आदिनाथ- प्रतिमा के दर्शन किये और अपनी संघयात्रा को सफल किया। संघ ने सम्राट् कुमारपाल को संघपति का तिलक करने के लिये महोत्सव मनाया। मालोद्घाटन के अवसर पर माला की प्रथम बोली श्रीमाल - ज्ञातीय गूर्जरमहामन्त्री श्रे० उदयन के पुत्र महं० वागभट की चार लक्ष रुपयों
*जै० ले० सं० १ ले ८३६.
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