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________________ :: प्राग्वाट - इतिहास :: [ द्वितीय गुर्जरसम्राट् कुमारपाल के राज्य में किरातकूप, लाटहद, और शिवा के सामन्तराजा, महाराजा श्री अल्हण - देव के शासनसमय वि० सं० १२०६ माघ कृ० १४ शनिश्वर को शिवरात्रि के शुभ पर्व पर श्रे० पूतिग और किराडू के शिवालय में शालिग की विनती पर महाराजा अल्हणदेव ने अभयदानपत्र प्रसिद्ध किया, जिसको महाराजपुत्र केल्हण और गजसिंह ने अनुमोदित किया । इस आज्ञापत्र को सांधिविग्रहिक बेलादित्य ने लिखा था । अभयदानलेख को लिखवा कर किरातकूप, जिसको हाल में किराडू कहते हैं के शिवालय में आरोपित किया, जो आज भी विद्यमान है । अभयदानलेख का सार इस प्रकार है: अभयदान - लेख १०२ ] 'प्राणियों को जीवितदान देना महान् दान है ऐसा समझ कर के पुण्य तथा यशकीर्त्ति के अभिलाषी होकर महाजन, तांबुलिक और अन्य समस्त ग्रामों के मनुष्यों को प्रत्येक माह की शुक्ला और कृष्णा अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी के दिनों पर कोई भी किसी भी प्रकार के जीवों को नहीं मारने की आज्ञा की है । जो कोई मनुष्य इस आज्ञा की अवज्ञा करेगा और कोई भी प्राणी को मारेगा, मरवावेगा तो उसको कठोर दण्ड की आज्ञा दी जावेगी । ब्राह्मण, पुरोहित, अमात्य और अन्य प्रजाजन इस आज्ञा का एक सरीखा पालन करें । जो कोई इस आज्ञा का भंग करेगा, उसको पाँच द्राम का दण्ड दिया जायगा, परन्तु जो राजा का सेवक होगा, उसको एक द्राम का दण्ड मिलेगा ।' * इस प्रकार इन धर्मात्मा श्रे० पूतिग और शालिग ने, जिनका सम्मान राजा और समाज दोनों में पूरा २ था और जो अपनी अहिंसावृत्ति के लिए दूर २ तक बिख्यात थे, नहीं मालूम कितने ही पुण्यकार्य किये और करवाये होंगे, परन्तु दुःख है कि उनकी शोध निकालने की साधन-सामग्री इस समय तक तो अनुपलब्ध ही है । नाडोलवासी प्राग्वाट ज्ञातीय महामात्य सुकर्मा वि० सं० १२१८ नाडोल के राजा अल्हणदेव बड़े धर्मात्मा राजा थे। इनकी राजसभा में जैनियों का बड़ा आदर-सत्कार था । इन्होंने जैन-शासन की शोभा बढ़ाने वाले अनेक पुण्यकार्य किये थे । इनका महामात्य प्राग्वाट कुलावतंस श्रे० वरणिग का पुत्र सुकर्मा था । सुकर्मा पवित्रात्मा प्रतिभासम्पन्न, लक्ष्मीपति और जैनशासन की महान् सेवा करने वाला नरश्रेष्ठ था । उसके वासल नामक सुयोग्य पुत्र था । अमात्य सुकर्मा की विनती पर महाराज अल्हणदेव ने संडेरकगच्छीय श्री महावीर जिनालय के लिए पाँच द्राम मंडपाशुल्क प्रतिमाह धूपवेलार्थ प्रदान करने की आज्ञा इस प्रकार प्रचारित की । ‘सं० १२१८ श्रावण शु० १४ ( चतुर्दशी) रविवार को चतुर्दशीपर्व पर स्नान करके, श्वेत वस्त्र धारण करके, त्रयलोकपति परमात्मा को पंचामृत अर्पित करके, विप्रगुरु की सुवर्ण, अन्न, वस्त्र से पूजा करके, ताम्रपत्र को श्रीधर नामक प्रा० जै० ले० सं० भा० २ ले० ३४५, ३४६.
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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