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खण्ड ] :: मंत्रीभ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री-वंश और गूर्जरमहामात्य चंडप और मुद्राव्यापारमंत्री चंडप्रसाद :: [१०५
मन्त्री-भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री-वंश वीरशिरोमणि गुर्जरमहामात्य वस्तुपाल एवं गुर्जरमहावलाधिकारी दंडनायक तेजपाल और उनके पूर्वज एवं वंशज
गुर्जरसम्राट भीमदेव प्रथम से महामण्डलेश्वर विशलदेव पर्यन्त
गूर्जरमहात्मात्य चंडप और मुद्राव्यापारमंत्री चंडप्रसाद
प्राग्वाटज्ञाति में चंडप नामक एक महान् राजनीतिज्ञ एवं वीरपुरुष हुआ है। गूर्जर-प्रदेश की राजधानी भणहिलपुरपत्तन में वह रहता था। वस्तुपाल-तेजपाल के वंश का वह मूलपुरुष कहा जाता है। उसने नागेन्द्रमूल पुरुष चंडप और गच्छ के महा प्रभावक प्राचार्य महेन्द्रसरि को अपना धर्मगुरु स्वीकृत किया था ।१ चंडप उसका पुत्र चंडप्रसाद जैसा वीर था, वैसा ही महादानी एवं उदारहृदय भी था । गूर्जरसम्राट के मन्त्रियों में वह मन्त्री-मुकुट माना जाता था। गुर्जरसम्राट भीमदेव प्रथम एवं कर्ण के शासनकाल में इसने महामन्त्री-पद पर आरूढ़ रहकर गूर्जर-भूमि की प्राणपण से सेवा की थी। उसने अपनी नीतिज्ञता से, बुद्धिमत्ता से जो गूर्जरसम्राटों की सेवा की थी, उसका उल्लेख मिलता है ।२ उसकी स्त्री का नाम चांपलदेवी था३, जो अत्यन्त गुणगर्भा थी। चांपलदेवी से चण्डप्रसाद नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । चण्डप्रसाद भी वीरता में, उदारता में अपने पिता के सदृश ही था । सरस्वती का वह अनन्य भक्त था। गूर्जरसम्राट् कर्ण की चण्डप्रसाद पर वैसी ही कृपा थी, जैसी उसके महान् वीर पिता चण्डप पर। वह कर्ण का अति विश्वासपात्र मन्त्री था और राज्य का मुद्राव्यापार-कार्य४ (कोषाध्यक्ष) वही करता था । चण्डप्रसाद उदारहृदय होने से महादानी हुआ। कवि और विद्वानों का वह सदा समादर करता था। उसकी उदारता एवं दान की कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई थी। चण्डप्रसाद की पतिपरायणा स्त्री का नाम जयश्री था।
१-'आसीच्चण्डपमंडितान्वयगुरुनागेन्द्रगच्छश्रियश्चूड़ारत्नमयप्रसिद्धमहिमासरिर्महेन्द्राधिपः ॥६॥
अ० प्रा० ० ले० सं० भा०२ ले०२५० 'प्र' के स्थान में 'ल' तथा 'त्र' श्री जिनविजयजी एवं मुनिराज जयन्तविजयजी द्वारा प्रकाशित लेख-संग्रह ग्रंथों में छपा है।
२-'वाग्देवताचरणकाञ्चननूपुरश्रीः श्रीचंडपः सचिवचक्रशिरोऽवतंसः। प्राग्वाटवंशतिलकः किल कर्णपूरलीलायितान्य धितगुर्जरराजधान्याः ॥४॥ मतिकल्पलता यस्य मनः स्थानकरोपिता। फलं गुर्जरभूपाना सङ्कल्पितमकल्पयत् ।।४।। वाग्देवीप्रसादः सूनुश्चण्डप्रसाद इति तस्य । निजकीतिवैजयन्त्या अनयत गगनाङ्गणे गङ्गाम् ॥४२॥"
ह० म०म० परि० प्र० पृ०६ (व० ते० प्र०) ३-प्र० प्रा० ० ले० सं०भा०२ ले० ३२० (हस्तिशालास्थलेख) ४-'गेहिन्येव वदान्योयं नृपव्यापारमुद्रया |
की० को००२१ (मंत्रीस्थापना) 'जैन श्वेताम्बर कान्फरेन्स' के सन् १६१५ के विशेषांक में प्रकाशित 'तपगाछ-पट्टावली के आधार पर 'पोरवाड़ महाजनों के इतिहास' के लेखक ने पृ०६१ पर वस्तुपाल तेजपाल का गोत्र 'उवरड़' लिखा है।