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खण्ड ]
:: प्राग्वाट अथवा पौरवालज्ञाति और उसके भेद ::
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और कन्या - व्यवहार निर्बाध होता है । जो जैन हैं, वे अधिकतर दिगम्बर श्रामनाथ के माननेवाले हैं, श्वेताम्बर
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मनाय के माननेवाले कुल इस शाखा में बहुत ही कम हैं। इस शाखा के कुलों के गोत्र पीछे से बने हैं, जहाँ बीसा - मारवाड़ी - पौरवाल, गूर्जर - पौरवालों के गोत्र उनके जैनधर्म स्वीकार करने के साथ ही उस ही समय निश्चित हुये हैं । चूँकि यह शाखा राजस्थान और मालवा में ही बसती है और राजस्थान और मालवा में कुलगुरुओं की पौषधशालायें ठेट से स्थापित रही हैं, फलतः इस शाखा का कुलगुरुओं से संबंध बराबर बना रहा है अतः इसके गोत्र और कुलदेवियों के नाम विलुप्त नहीं हो पाये हैं। इस शाखा के २८ अट्ठाईस गोत्र उपलब्ध हैं और नकी सत्रह कुलदेवियाँ हैं ।
गोत्र
१ यशलहा
४ चरवाहदार ७ सौपुरिया
१० राहरा
१४ मंडावरिया
१६ दुष्कालिया १६ रोहल्या
२२ बोहत्तरा
२५ कुहणिया २८ मोहलसद्दा
कुलदेवियाँ
सेहवंत
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आशापुरी
सोहरा
वाणावती
नागिनी
कहाची
पालिणी
वाणाकिनी
गोत्र
२ डंगाहड़ा
५ ननकरया
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८तवनगरिया
शापुरी
११ हिंडोणीया सहा सांकिली
१४ लक्ष किया
लूकोड
१७ चौदहवां
दादिणी
नागिनी
कुलदेवियाँ
सेहवंत
२० धनवंता
२३ पंचोली
२६ सुदासद्दा
पालिणी
लोहिणी
जांगड़ा पौरवाल अथवा पौरवाड़
गोत्र
३ कूचरा
६ चौपड़ा
६ कर्णजोल्या
१२ श्रामोत्या
१५ समरिया
१८ मोहरोंवाल
२१ विड़या
२४ उर्जरधौल
२७ अधेड़ा
कुलदेवियाँ
सेहवंत
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आशापुरी
श्रमण
सिंहासिनी
यक्षिणी
विलीणी
पालिणी
दुःखाहरण
पौरवाल और पौरवाड़ एक ही शब्द है । मालवा में कहीं 'ल' को 'द' करके भी बोला जाता है । यहाँ भी 'पोरवाल' के 'ल' को 'ड़' करके बोलने से मालवा - प्रान्त में 'पौरवाल' शब्द 'पौरवाड़' भी बोला जाता है ।
जांगड़ा - पौरवाल शाखा को लघुसन्तानीय, दस्साभाई, लघुसज्जनीय भी कह सकते हैं; क्यों कि इस शाखा में केवल दस्सा पौरवाल ही हैं अर्थात् यह शाखा एक प्रकार से दस्सा अथवा लघुसन्तानीय कहे जाने वाले पौरवालकुलों का ही संगठन है । लघुसन्तानीय जब कोई शाखा अगर कही जा सकती है, तो बृहत् सन्तानीय भी कोई शाखा होनी चाहिए के भाव स्वतः सिद्ध हो जाते हैं । और यह भी सिद्ध हो जाता है कि दोनों शाखायें एक ही ज्ञाति के दो पक्ष हैं अर्थात् लघुपक्ष और बृहत्पक्ष । यह तो निर्विवाद है कि जांगड़ा पौरवालों की शाखा के कुल सौरठिया, कपोलिया, मारवाड़ी, गूर्जर शाखाओ के कुलों के ही लघुसन्तानीय (भाई) हैं