________________
सर]
:: शत्रुञ्जयोद्धारक चश्माईश श्रेष्ठ सं० जावड़शाह ::
[२
गया था । शत्रुंजयतीर्थ के आस-पास के प्रदेश पर भी इस कपर्द असुर का अधिकार था । इसके अत्याचारों से घबरा कर जनता अपने घर-द्वार छोड़कर दूर २ भाग गई थी। शत्रुंजयतीर्थ के मार्ग ही बन्द हो गये थे । इस प्रकार तीर्थ का उच्छेद लगभग ५० वर्ष पर्यन्त रहा । जनता को यह सहन तो नहीं हो रहा था, परन्तु अत्याचारी नरभक्षक असुरों के आये उसका कोई क्श नहीं चलता था । जब कपर्दि असुर ने सुना कि जावड़शाह अनन्त सैन्य के साथ शत्रुंजयमहातीर्थ का उद्धार करने के लिये चला आ रहा है, अत्यन्त क्रोधातुर हुआ और उसने मार्ग में अनेक विघ्न उत्पन्न करने प्रारम्भ कर दिये; परन्तु जावड़शाह जैसे धर्मिष्ठ के मन को कौन डिगा सकता था ? वह सब बाधाओं को झेलता हुआ, पार करता हुआ आगे बढ़ता ही गया । वज्रस्वामी अनन्त ज्ञान और पूर्वभवों के ज्ञाता थे । इनकी सहाय पाकर जावड़शाह निर्विघ्न शत्रुंजयतीर्थ की तलहट्टी में पहुंचा। शुभ मुहूर्त में संघ ने तीर्थपर्वत पर बढ़ना प्रारम्भ किया, यद्यपि असुरों ने अनेक विघ्न डाले, विकराल रूप बना बना कर लोगों को डराया, लेकिन छल-मन्त्र सफल नहीं हुआ और शुभ पल में आदिनाथमन्दिर में जाबड़'शाह, वज्रस्वामी और संघ ने जाकर प्रभु के दर्शन किये । तीर्थ छोड़कर असुर सब भाग गये । जावड़शाह ने सर्व 'विघ्नों को अन्तप्रायः हुआ देखकर तीर्थ को कई बार धुपवाया और समस्त पर्वत मांस-मदिरा से जो लिप-पुत गया था तथा हड्डियों से ढँक चुका था, उसको साफ करवाया । मन्दिरों का जीर्णोद्धार प्रारंभ करवाया और शुभ मुहूर्त में नवप्रभु आदिनाथ के बिंब की स्थापना की । शत्रुंजयमहातीर्थ का यह तेरहवाँ उद्धार था, जो वि० सं० १०८ में पूर्ण हुआ ।
मन्दिर के ऊपर दोनों पति और पत्नी जब भक्ति भावपूर्वक ध्वजा फर्का रहे थे, उसी समय उन दोनों की दिव्य आत्मायें नश्वर पंचभूत शरीरों को छोड़ कर देवलोक को सिधार गई। जब अधिक समय हो गया और जावड़शाह और सुशीला दोनों नीचे नहीं उतरे तो लोगों को शंका हुई कि क्या हुआ। जब ऊपर जाकर देखा का स्वर्गगमन तो दोनों हाथ जोड़े खड़े हैं और देहों में प्राण नहीं हैं। जाजनाग को यह जान कर अत्यन्त शोक हुआ, परन्तु समर्थ वज्रस्वामी ने उसको धर्मोपदेश देकर इस प्रकार देह त्याग करने के शुभयोग को समझाया । जीर्णोद्धार का शेष रहा कार्य जाजनाग ने पूर्ण करवाया था ।
भारत-भूमि पर जब तक शत्रुंजयमहातीर्थ और उसका उज्ज्वल गौरव स्थापित रहेगा, शत्रुंजयतीर्थ तेरहवें उद्धारक श्रे० जावड़शाह और उसकी धर्मात्मा पत्नी सुशीला की गाथा घर घर गाई जाती रहेगी ।