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________________ २४ ] :: प्राग्वाट-इतिहास :: [प्रथम कि सम्राट प्रसन्न होकर तुमको स्वदेश लौटने की आज्ञा दे देगा जावड़शाह को स्मरण तो थे ही। जावड़शाह ने सुन्दर अवसर देखकर सम्राट से निवेदन किया कि वह अपने परिवार और धन, जन सहित स्वदेश लौटने की आज्ञा चाहता है । जावड़शाह की इस प्रार्थना को सम्राट ने सहर्ष स्वीकार किया और जब इच्छा हो, जाने की आज्ञा प्रदान कर दी। ___मलेच्छ-सम्राट से योग्य सहायता लेकर जावड़शाह अपने परिवार, धन, जन सहित शुभ मुहूर्त में प्रयाण करके स्वदेश को चला। मार्ग में वह तक्षशिलानगरी के राजा जगन्मल्ल के यहाँ ठहरा । राजा जगन्मल्ल नावडशाह का स्वदेश को जावड़शाह को शत्रुजय के उद्धार के निमित्त जाते हुए श्रवण कर अत्यन्त ही प्रसन्न लौटना हुआ और धर्म-चक्र के आगे प्रगट हुआ दो पुण्डरीकजी वाला श्री आदिनाथ-बिंब शत्रुजयमहातीर्थ पर स्थापित करने के लिये जावड़शाह को अर्पित किया । जावड़शाह ने स्नान आदि करके शरीर शुद्धि की और प्रभु का पूजन अतिशय भावभक्तिपूर्वक किया और बिंब को लेकर सौराष्ट्र-मण्डल की ओर चला । मार्ग में कोई विध | उत्पन्न नहीं होवे, इसलिए उसने एकाशन-व्रत का तप प्रारम्भ किया और अनेक विघ्न-बाधाओं को जीतता हुआ वह सौराष्ट्र-मण्डल में पहुंचा। ___ मार्ग में जब ग्राम, नगर, पुरों के धर्म-प्रेमी जनों ने सुना कि जावड़शाह शत्रुजयमहातीर्थ का उद्धार करने के लिये जा रहा है, उन्होंने अनेक प्रकार की अमूल्य भेटे ला ला कर भगवान् आदिनाथ-बिंब के आगे रक्खीं और अनन्त द्रव्य तीर्थ के ऊपर उद्धार में व्यय करने के निमित्त भेंट किया। इस प्रकार जावड़शाह ग्राम २ में नगरनगर में आदर-सत्कार पाता हुआ और अनन्त भेंटे लेता हुआ अपनी राजधानी मधुमती पहुंचा। मधुमती के प्रगणा की जनता ने जब यह सुना कि उसका स्वामी अनन्त ऋद्धि और द्रव्य के साथ स्वस्थान को लौट रहा है और शत्रुज्यमहातीर्थ का उद्धार उसके हाथ से होगा, वह फूली नहीं समायी और अपने स्वामी का स्वागत करने के लिये बहुत धूम-धाम से आगे आई । अत्यन्त धूम-धाम, सज-धज के साथ जनता ने जावड़शाह का नगर में प्रवेश करवाया। जावड़शाह ने अपने वियोग में दुःखी अपनी प्यारी जनता के दर्शन करके अपने भाग्य की सराहना की। जावडशाह ने पूर्व जो जहाज करियाणा-सामग्री से भर कर विदेशों में महाचीन, चीन तथा भोट देशों में समुद्र-मार्ग से भेजे थे, वे भी विक्री करके अमूल्य निधि लेकर ठीक इस समय में लौट आये । यह सुनकर जावड़शाह को अत्यन्त हर्ष हुआ और शत्रुञ्जयजीर्णोद्धार-कार्य में व्यय करने के लिये अब उसके पास बहुत द्रव्य हो गया। समस्त सौराष्ट्र, गुजरात, कच्छ, राजस्थान, मालवा, मध्यप्रदेश, विंध्यप्रदेश, संयुक्तप्रान्त, उत्कल, बंगाल और दक्षिण भारत की जैन-जनता को ज्योंही यह शुभ समाचार पहुंचे कि मधुमती का स्वामी जावड़शाह मलेच्छदेश से लौट आया है और शत्रुजय का उद्धार करेगा अत्यन्त ही प्रसन्न हुई। संघ-प्रयाण के शुभ दिवस के पहिले २ अनन्त जैन और अजैन जनता मधुमती में एकत्रित हो गई। जावड़शाह ने आगत संघों की अति अभ्यर्थना की और शुभ मुहूर्त में महातीर्थ का उद्धार करने के हेतु वज्रस्वामी जैसे समर्थ प्राचार्य की तत्त्वावधानता में प्रयाण किया। शत्रुञ्जय-महातीर्थ पर इस समय कपर्दि नामक असुर का अधिकार था । वह और उसके दल वाले तीर्थ पर रहते थे। समस्त तीर्थ मांस और मदिरा से लिप-पुत गया था। प्रभुदर्शन तो दूर रहे, नित्य पूजन भी बन्ध हो
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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