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________________ २० ] :: प्राग्वाट इतिहास :: [ प्रथम हुये मधुमती नामक नगर का बारह ग्रामों का समृद्ध मण्डल प्रदान किया । भावड़शाह को इस प्रकार सम्राट द्वारा श्रश्व - किशोरों का मूल्य चूकता करता हुआ देखकर सर्वजनों ने सम्राट के न्याय और चातुर्य की अतिशय प्रशंसा की । सम्राट ने भावड़शाह को बड़े हर्ष और धूम-धाम से विदाई दी । अब मण्डलेश्वर भावड़शाह हर्षयुक्त अपने नगर कांपिल्यपुर की ओर चले । जब वे सानन्द नगर में पहुंचे तो उनके मधुमती का मण्डलेश्वर बनने की चर्चा नगर में घर-घर प्रसारित हो गई। राजा तपनराज ने भी जब यह सुना तो वह भी अति ही हर्षित हुआ । राजा तपनराज ने भावड़शाह का अति सम्मान किया । सौभाग्यवती भावला आज सचमुच सौभाग्यवती थी । कुछ दिन कांपिल्यपुर में ठहर कर भावड़शाह ने शुभ मुहूर्त में अपने परिवार और धन, जन के साथ में मधुमती के लिये प्रस्थान किया । कांपिल्यपुर-नरेश और नागरिकों ने हर्षाश्रु के साथ भावड़शाह को विदा दी । भावड़शाह के मधुमती पहुँचने के पूर्व ही सम्राट् विक्रम का आज्ञापत्र मधुमती के राज्याधिकारी को प्राप्त हो चुका था कि मधुमती का प्रगणा श्रेष्ठि भावड़शाह को भेंट किया गया है । मधुमती के राज्याधिकारी ने अपने मधुमती में प्रवेश और प्रगणे में सम्राट की घोषणा को राज्यसेवकों द्वारा प्रसिद्ध करवा दिया था । मधुमती की जनता अपने नव स्वामी के गुण और यश से भली-विध परिचित हो चुकी थी, अतः अत्यधिक उत्कण्ठा से भावड़शाह के शुभागमन की प्रतीक्षा कर रही थी तथा उसके स्वागत के लिये विविध प्रकार की शोभा पूर्ण तैयारी कर रही थी । मण्डल का शासन मधुमती पश्चिमी समुद्रतट के किनारे सौराष्ट्र-मण्डल के अति प्रसिद्ध बन्दरों और समृद्ध नगरों में से एक था । यहाँ से अरब, अफगानिस्तान, तुर्की, मिश्र, ईरान आदि पश्चिमी देशों से समुद्र मार्ग द्वारा व्यापार होता था । मधुमती में अनेक बड़े २ श्रीमन्त व्यापारी रहते थे, जो अनेक जलयानों के स्वामी थे और अगणित स्वर्ण-मुद्राओं के स्वामी थे । मधुमती का नव-स्वामी स्वयं श्रेष्ठिज्ञातीय श्रीमन्त हैं और स्वयं प्रसिद्ध व्यापारी हैं - यह श्रवण कर मधुमती के व्यापारियों के आनन्द का पार नहीं था । साधारण जनता यह सुनकर कि नव-स्वामी स्वयं दारिद्रय . भोग चुके हैं और अपने शुभ कर्मों के प्रताप से इस उच्च पद को प्राप्त हुये हैं— श्रवण कर अति ही प्रसन्न हो रहे थे कि अब उनकी उन्नति में कोई अड़चन नहीं आने पावेगी । इस प्रकार श्रीमन्त, रंक समस्त भावड़शाह के शुभागमन को अपने लिये सुख-समृद्धि का देने वाला समझ रहे थे । भावड़शाह मधुमती के निकट आ गये हैं, श्रवण करके छोटे-बड़े राज्याधिकारी, सैनिक, नगर के आबाल-वृद्ध तथा समीपस्थ नगर एवं ग्रामों की जनता अपने नव-स्वामी का स्वागत करने बढ़ीं और अति हर्ष एवं आनन्द के साथ श्रेष्ठ भावड़शाह का नगर - प्रवेश करवाया । नगर उस दिन अद्भुत वस्त्रों, अलंकारों से सजाया गया था। घर, हाट, चौहाट, राजपथ, मन्दिर, धर्मस्थान, राजप्रासादों की उस दिन की शोभा अपूर्व थी । भावड़शाह ने नगर में प्रवेश करते ही गरीबों को खूब दान दिया, मन्दिरों में अमूल्य भेटे भेजीं और जनता को प्रीतिभोज तथा सधर्मी बन्धुओं को साधर्मिक वात्सल्य देकर प्रेम और कीर्ति प्राप्त की । भावड़शाह सदा दीनों को दान, अनाथ एवं हीनों को आश्रय देता था। उसने सम्राट के राज्याधिकारी से प्रगणे का शासन सम्भाल कर ऐसी सुव्यवस्था की कि थोड़े ही वर्षों में मधुमती का व्यापार चौगुणा बढ़ गया,
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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