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________________ खण्ड] :: शत्रुञ्जयोद्धारक परमाहत श्रेष्ठि सं० जावड़शाह :: [ १६ दिखाई देता। उसकी स्त्री सौभाग्यवती भावला ने भी भावड़शाह को सम्राट विक्रम के पास घोड़ों को ले जाने की सम्मति दी। वैसे घोड़ों के अलग २ व्यापारी आते थे, लेकिन भावड़शाह और उसकी स्त्री दोनों ने उन सर्व को पुत्रों की तरह बड़े लाड़-प्यार से पाल-पोश कर बड़े किये थे, अतः वे उनको अलग २ बेचकर एक-दूसरे से अलगअलग करना नहीं चाहते थे । वे एक ऐसे व्यापारी की प्रतीक्षा में थे, जो उन सर्व को एक साथ खरीदने की शक्ति रखता हो और उसके यहाँ उनको लालन-पालन सम्बन्धी किसी प्रकार का किञ्चित् भी कष्ट नहीं हो। शुभ मुहूर्त देखकर भावड़शाह उन सर्व अश्व-किशोरों को लेकर अवंती की ओर चले। अवंती पहुँच कर सम्राट विक्रमादित्य की राज-सभा में अपने आने और अपने मनोरथ की सूचना दी। सम्राट ने अपने विश्वासपात्र पुरुषों द्वारा भावड़शाह का परिचय प्राप्त किया। वह अश्व-किशोरों के रूप, लावण्य और गुणों की अत्यधिक प्रशंसा सुनकर भावड़शाह से मिलने को अति ही आतुर हुआ और तुरन्त राज्यसभा में भावड़शाह को बुलवाया। सम्राट का निमन्त्रण पाकर भावड़शाह राज्य सभा में उपस्थित हुए। वे विधिपूर्वक सम्राट को नमन करके हाथ जोड़कर बोले, 'सम्राट् ! मैं आपको भेंट करने के लिए एक ज्ञाति और एक ही रूप, वय के अनेक अश्व-किशोर जो सर्व लक्षणवान् हैं, युद्ध में विजय दिलाने वाले हैं, आपको भेंट करने लाया हूँ, आशा है आप मेरी भेंट स्वीकार करेंगे।' सम्राट् यह सुनकर अचरज करने लगे कि लाखों की कीमत के घोड़े यह श्रेष्ठि भेंट कर रहा है, परन्तु मैं सम्राट होकर ऐसी अमूल्य भेंट बिना मूल्य चुकाये कैसे स्वीकार कर लूँ ? सम्राट ने भावड़शाह से कहा कि मैं भेट तो स्वीकार नहीं कर सकता, उन अश्व-किशोरों को खरीद सकता हूँ। भावड़शाह बोले-'सम्राट् ! मैं उनको आपको भेंट कर चुका, भेंट की हुई वस्तु का मूल्य नहीं लिया जाता। आप मुझको विवश नहीं करें और अब मैं उन अश्व-किशोरों को अपने घर भी पुनः लौटा कर नहीं ले जा सकता। मैंने उनको आपश्री को भेंट करने के लिये ही पाल-पोश कर बड़ा किया है । वे सम्राट के अश्व-स्थल में शोभा पाने योग्य हैं । वे आपकी सवारी के योग्य हैं । आप उन पर विराज कर जब युद्ध करेंगे, अवश्य विजय प्राप्त करके ही लौटेंगे, क्योंकि वे सर्व लक्षणवान् हैं, वे अपने स्वामी का यश, कीर्ति और गौरव बढ़ाने वाले हैं। लक्षणवान् अश्व पर आरूढ़ होकर मंद भाग्यशाली भी सुख और विजय प्राप्त करता है तो आप तो भारत के सम्राट हैं, महापराक्रमी हैं, अति सौभाग्यशाली हैं। आप से वे सुशोभित होंगे और आप उन पर आरूढ़ होकर अति ही शोभा को प्राप्त होंगे।' सम्राट ने भावड़शाह का दृढ़ निश्चय देखकर अश्व-किशोरों को भेंट रूप में स्वीकार कर लिया और भावड़शाह का अत्यधिक सम्मान किया तथा कुछ दिनों अवंती में राज्य-अतिथि के रूप में रहने का आग्रह किया। भावड़शाह ने अपने प्राणों से प्यारे अश्व-किशोरों को सम्राट विक्रम द्वारा भेंट में स्वीकार कर लेने पर सुख की श्वास ली और राज्य-अतिथि के रूप में अवती में ठहरे। ___ जब बहुत दिवस व्यतीत हो गये, तब एक दिन सम्राट से भावड़शाह ने अपने घर जाने की इच्छा प्रकट की। सम्राट ने अनुमति प्रदान कर दी। दिन को सम्राट ने भावड़शाह की विदाई के सम्मान में भारी राज्य-सभा बुलाई और भावड़शाह की सराहना करते हुये सर्व मण्डलेश्वरों, सामन्तों, भूमिपतियों, महामात्य, अमात्यों तथा राज्य के प्रतिष्ठित कर्मचारियों, श्रीमन्तों, सम्मानित व्यक्तियों के समक्ष भावड़शाह को पश्चिमी समुद्रतट पर आये उ० त० पृ० २७० पर '४ ग्रामसंयुक्तमधुमतीनगरीराज्यं लब्धम् ।' लिखा है। परन्तु, बारहग्रामसंयुक्तमधुमती का प्रगणा मिलने की बात अधिक विश्वसनीय प्रतीत होती है।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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