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________________ खण्ड ] :: शत्रुञ्जयोद्धारक परमार्हत श्रेष्ठि सं० जावड़शाह :: [ २१ जनता सुखी और समृद्ध हो गई। मानव को तो क्या, उसके आधीन क्षेत्र में कीड़ी और कीट तक को कोई भी सताने वाला नहीं रहा । जँगल के पशु और पक्षी भी निर्भय रहने लगे । दुःख और दारिद्र्य उड़ गया । दूर २ तक भावड़शाह के रामराज्य की कीर्त्ति प्रसारित हो गई। विदेशों में मधुमती में बढ़ते हुये धन की कहानियाँ कही जाने लगीं । प्रगणों में चौर, डाकू, लूटेरों, ठग, प्रवंचकों, पिशुनों का एक दम अस्तित्व ही मिट गया । स्वयं भावड़शाह रात्रि को और दिन में अपनी प्यारी जनता की सुरक्षा और सुख की खबर प्राप्त करने स्वयं भेष बदल कर निकलता था । इस प्रकार मधुमती के प्रगणे में आनन्द, शान्ति और सुख अपने पूरे बल पर फैल रहा था । प्रजा सुखी थी, भावड़शाह और सौभाग्यवती भावला भी अपनी प्यारी प्रजा को सुखी और समृद्ध देखकर फूले नहीं समाते थे; परन्तु फिर भी एक अभाव सदा उन्हें उद्विग्न और व्याकुल बना रहा था - वह था पुत्ररत्न का अभाव । भी यद्यपि मुनिराज के वचनों में दोनों स्त्री-पुरुष को विश्वास था । और जैसा मुनिराज ने कहा था कि बाजारों में लक्षणवंती घोड़ी चिकने आवेगी, उसको खरीद लेना, वह तुम्हारे भाग्योदय का कारण होगी और हुआ पुत्र रत्न की प्राप्ति और वैसा ही । मुनिराज ने दो बातें कही थीं— लक्षणवंती घोड़ी का खरीदना और उसकी शिक्षा अवसर आये पुत्ररत्न की प्राप्ति । इन दो बातों में से एक बात सिद्ध हो चुकी थी । अतः दोनों स्त्री-पुरुषों को दृढ़ विश्वास हो गया था कि दूसरी बात भी सत्य सिद्ध होगी; परन्तु अपार धन और वैभव के भाव में पुत्र का अभाव और भी अधिक खलता है। श्रे० भावड़शाह आज अपनी पूरी उन्नति के शिखर पर था। समाज, राज, देश में उसका गौरव बढ़ रहा था । न्याय, उदारता, धर्माचरण के लिये वह अधिकतम प्रख्यात था, अतुल वैभव और समृद्धि का स्वामी था और इन सर्व के ऊपर मधुमती जैसे समृद्ध और उपजाऊ प्रगणा का अधीश्वर था । ऐसी स्थिति में पुत्र का नहीं होना सहज ही अखरता है। मधुमती की प्रजा भी अपने स्वामी के कोई संतान नहीं देखकर दुःखी ही थी । जब अधिक वर्ष व्यतीत हो गये और कोई संतान नहीं हुई, तब भावड़शाह और उसकी स्त्री ने अपने अतुल धन को पुण्य क्षेत्रों में व्यय करना प्रारंभ किया । नवीन मंदिर बनवाये, जीर्ण मंदिरों' का उद्धार करवाया, बिम्बप्रतिष्ठायें करवाई, स्थल २ पर प्रपायें लगवाईं । सत्रागार खुलवाये, पौषधशाला और उपाश्रय बनवाये, साधर्मिक वात्सल्य और प्रीतिभोज देकर संघसेवा और प्यारी प्रजा का सत्कार किया, निर्धनों को धन, अनाथों को शरण, अपंगों को आश्रय, बेकारों को कार्य और गरीबों को वस्त्र, अन्न, धन देना प्रारंभ किया । पुण्य की जड़ पाताल में होती है, अंत में सौभाग्यवती भावला एक रात्रि को शुभ मुहूर्त में गर्भवती हुई और अवधि पूर्ण होने पर उसकी कुक्षी से अति भाग्यशाली एवं परम तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम जावड़शाह रक्खा गया। यह शुभ समाचार मधुमती की जनता में अपार आहाददायी और सुख एवं शांति का प्रसार करने वाला हुआ । समस्त जनता ने अपने स्वामी के पुत्र के जन्म के शुभ लक्ष्य में भारी समारोह, उत्सव किया, मंदिरों में विविध पूजायें बनवाई गई। ग्राम २ में प्रीतिभोज और साधर्मिक – वात्सल्य किये गये और प्रत्येक जन ने यथाशक्ति अमूल्य भेंट देकर भावड़शाह को बधाया । जावड़शाह चंद्रकला की भांति बढ़ने लगा। छोटी वय में ही उसने वीरोचित शिक्षा प्राप्त कर ली, जैसे घोड़े की सवारी, तलवार, बर्बी, बल्लम के प्रयोग, तैरना, मल्लयुद्ध, धनुर्विद्या आदि । मल्लयुद्ध और धनुर्विद्या में जावड़शाह इतना प्रख्यात हुआ कि उसकी कीर्ति और बाण चलाने अनेक चर्चायें दूर २ तक की जाने लगीं। भावड़शाह
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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