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________________ . गुरुचिंतन और अन्य समवायों की मुख्यता से अकालनय घटित होता है। (३२-३३) पुरुषकारनय और देवनय “आत्मद्रव्य पुरुषकारनय से, जिसे पुरुषार्थ द्वारा नींबू का वृक्ष या मधुछत्ता प्राप्त होता है - ऐसे पुरुषार्थवादी के समान यत्नसाध्य सिद्धिवाला है, और दैवनय से जिसे पुरुषार्थवादी द्वारा नीबू का वृक्ष या मधुछत्ता प्राप्त हुआ और उसमें से जिसे बिना प्रयत्न के ही अचानक माणिक्य प्राप्त हो गया है - ऐसे दैववादी के समान अयत्नसाध्य सिद्धिवाला है।" १. भगवान आत्मा की दुःखों से मुक्ति यत्नसाध्य है या अयत्नसाध्य - इस प्रश्न का उत्तर इन नयों के द्वारा दिया गया है। २. भगवान आत्मा में अन्तर्मुखी पुरुषार्थ द्वारा मुक्ति प्राप्त करने की योग्यता को पुरुषकार धर्म कहते है और उसी समय कर्मक्षय का नैमित्तक कार्य होने की योग्यता है जिसे दैवधर्म कहते है। इन दोनों धर्मों को जाननेवाला ज्ञान पुरुषकारनय और दैवनय कहलाता है। ३. इन दोनों धर्मों को अलग-अलग उदाहरणों से इष्ट संयोग' के सन्दर्भ में समझाया गया है। परन्तु सिद्धान्त में एक ही कार्य में दोनों नय घटित होते हैं। क्षपक श्रेणी के पुरुषार्थ से केवलज्ञान होता है - ऐसा कहना पुरुषकारनय का कथन है और ज्ञानावरणीकर्म के क्षय से केवलज्ञान होता है - ऐसा कहना दैवनय का कथन है। इस सन्दर्भ में नयप्रज्ञापन पृष्ठ २१५-२१६ (गुजराती) में व्यक्त किए गए पूज्य गुरुदेव का निम्नलिखित चिन्तन ध्यान देने योग्य है - "किसी को पुरुषार्थ से मुक्ति प्राप्त हो और किसी को दैव (भाग्य) से - इसप्रकार भिन्न-भिन्न आत्माओं की यह बात नहीं है। प्रत्येक आत्मा में ये दोनों ही धर्म एकसाथ रहते हैं। अतः दैवनय के साथ अन्य नयों
SR No.007255
Book TitleGuru Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMumukshuz of North America
PublisherMumukshuz of North America
Publication Year2013
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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