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________________ 48 गुरुचिंतन भगवान आत्मा में कार्य की सिद्धि समय पर आधारित हो अर्थात् समय की मुख्यता से हो - ऐसी योग्यता है जिसे काल धर्म कहते हैं और काल के अतिरिक्त अन्य समवायों की प्रधानता से कार्य सिद्धि की योग्यता वाला है, जिसे अकाल धर्म कहते हैं। इन दोनों धर्मों को जानने वाला ज्ञान कालनय और अकालनय कहलाता है। १. कालनय के लिये डाली पर प्राकृतिकरूप से पकने वाले आम का उदाहरण दिया गया। यद्यपि उसमें भी वृक्ष को सींचना खाद आदि देना इत्यादि प्रयत्न किये जाते है पर इन्हें गौण करके काल की मुख्यता से कहा जाता है कि आम अपने समय में ही पका है। २. अकालनय को समझने के लिए कृत्रिम गर्मी से पकाने वाले आम का उदाहरण दिया गया है। कृत्रिम गर्मी में रखे गये आम एक साथ नहीं पकते, आगे-पिछे पकते हैं। इससे सिद्ध होता है कि कृत्रिम गर्मी सभी आमों को एक जैसी मिलने पर भी अपनी-अपनी योग्यतानुसार अपने-अपने स्वकाल में सभी आम पकते हैं। परन्तु निमित्त को मुख्य करके और काल को गौण करके कहा जाता है कि आम गर्मी से पके - यही अकालनय का कथन है। ३. अकाल से आशय समय से पहले कार्य हो गया - ऐसा नहीं है। अन्य समवायों को काल से भिन्न अकाल शब्द से सम्बोधित किया गया है। जरा विचार करे! समय से पहले का क्या अर्थ है? जब भी कार्य होगा तब कोई न कोई समय तो होगा ही। तो फिर वह समय पर ही हुआ क्यों न माना जाए? हमने अपनी कल्पना में उस कार्य का कोई समय निर्धारित कर रखा था उस अपेक्षा हम उसे समय से पहले या विलम्ब से हुआ कह देते है। इस प्रकरण पर विशेष जानकारी के लिए ज्ञान स्वभाव ज्ञेय स्वभाव, क्रमबद्धपर्याय निर्देशिका आदि ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिए। ४. कोई कार्य स्वकाल में हो और कोई कार्य आगे-पीछे होते हो - ऐसा नहीं है। एक ही कार्य में काल की मुख्यता से कालनय
SR No.007255
Book TitleGuru Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMumukshuz of North America
PublisherMumukshuz of North America
Publication Year2013
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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