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________________ ___41 गुरुचिंतन ७. प्रश्न - प्रथम द्रव्यनय और इस सामान्यनय में क्या अन्तर उत्तर - प्रथम द्रव्यनय आत्मा को चिन्मात्र देखता है, गुणपर्यायों में व्यापकता उसका विषय नहीं। वह सामान्यनय का विषय नहीं। ___ इसीप्रकार पर्यायनय का विषय गुण-पर्याय के भेदमात्र है, उनकी अव्यापकता नहीं। उनकी परस्पर अव्यापकता विशेषनय का विषय है। . (१८-१९) नित्यनय और अनित्यनय "आत्मद्रव्य नित्यनय से नट की भांति अवस्थायी है और अनित्यनय से राम-रावण की भांति अनवस्थायी है।" १. जैसे कोई कलाकार राम-रावण, पुलिस-अपराधी आदि अनेक स्वांग धारण करने पर उस स्वांग रूप नहीं होता, वह व्यक्ति तो वही का वही रहता है, उसीप्रकार भगवान आत्मा भी नर-नारकादि स्वांग धारण करने पर भी नहीं बदलता, आत्मा तो वही का वही, वैसा ही रहता है। आत्मा की यह योग्यता ही नित्य धर्म है और उसे जाननेवाला ज्ञान नित्यनय है। 'नवतत्त्वगतत्वेऽपि यदेकत्वं न मुञ्चति' (समयसार कलश ७) इस पंक्ति में आत्मा की नित्यता दिखाई गई है। २. नित्य रहकर भी आत्मा किसी न किसी पर्याय (स्वांग) में अवश्य रहता है और ये स्वांग नित्य नहीं है, ये बदलते रहते हैं। स्वांग बदलने की यह योग्यता ही अनित्य धर्म है और इसे जानने वाला ज्ञान अनित्यनय है। ३. प्रवचनसार, गाथा ११४ की टीका में आत्मा की नित्यता और अनित्यता समझाई गई है। वहाँ पर्यायें परस्पर भिन्न हैं (अव्यापक) हैं और द्रव्य उनसे तन्मय (अनन्य) होने से अन्य-अन्य है - इसप्रकार द्रव्य को पर्यायदृष्टि से अनित्य कहा गया है।
SR No.007255
Book TitleGuru Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMumukshuz of North America
PublisherMumukshuz of North America
Publication Year2013
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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