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________________ गुरुचिंतन ४. आत्मा अपनी मिथ्यात्व और सम्यक्त्व दोनों पर्यायों में व्यापक है अर्थात् इनके स्वकाल में इन पर्यायरूप में परिणमन करता है, परन्तु मिथ्यात्व पर्याय आगामी सभी पर्यायों में व्यापक हो जाये तो मिथ्यात्व का अभाव कभी नहीं हो सकेगा। मिथ्यात्व पर्याय का नाश होकर सम्यक्त्व पर्याय प्रकट होने पर मानो सम्पूर्ण आत्मा ही पलट जाता है - ऐसा प्रतिभासित होता है। अतः पर्याय अपेक्षा आत्मा अव्यापक धर्मस्वरूप है। 40 ५. प्रश्न - मिथ्यात्व तो अनादिकाल से है और क्षायिक सम्यक्त्व अनन्त काल तक रहेगा तो एक पर्याय को दूसरी पर्यायों में व्यापक क्यों न माना जाए ? उत्तर उपर्युक्त कथन प्रवाह अपेक्षा से किया गया है। अनादि कल से श्रद्धा गुण की प्रत्येक समय की पर्यायों में मिथ्यात्व उत्पन्न हो रहा है। अतः प्रवाह अपेक्षा उसे अनादि का कहा जाता है। क्षायिक सम्यक्त्व भी प्रति समय अनन्त काल तक नया-नया होता रहेगा, अतः उसे अनन्त कहा जाता है। यह बात अन्य सभी पर्यायों में यथायोग्य समझ लेनी चाहिए। ६. प्रश्न भावनय, द्रव्यनय और सामान्यनय में क्या अन्तर है ? उत्तर - यह भगवान आत्मा भावनय से वर्तमानपर्यायरूप प्रतिभासित होता है, द्रव्यनय से भूत-भावीपर्यायरूप से प्रतिभासित होता है और इस सामान्यनय से भूत, वर्तमान और भविष्य - इन तीनों काल की पर्यायों में व्याप्त प्रतिभासित होता है। सामान्यनय से अर्थात् द्रव्य - अपेक्षा आत्मा सर्वपर्यायों में व्याप्त है, पर विशेषनय से अर्थात् पर्याय-अपेक्षा आत्मा सर्वपर्यायों में व्याप्त नहीं है, इसलिए यह कहा जाता है कि यह आत्मा सामान्यनय से व्यापक है और विशेषनय से अव्यापक है।
SR No.007255
Book TitleGuru Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMumukshuz of North America
PublisherMumukshuz of North America
Publication Year2013
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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