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________________ 39 गुरुचिंतन जिनेन्द्र भगवान को जिनेन्द्र कहना भावनय है। इस विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि आत्मा में विद्यमान नामस्थापना-द्रव्य और भाव ये धर्म ज्ञेय है तथा इनको जाननेवाले चारों नय श्रुतज्ञान है और इनके आधार पर प्रचलित होनेवाला लोक व्यवहार निक्षेप इन चारों नयों को जानने से आत्मा की विशिष्ट योग्यताओं का ज्ञान होता है और उसके प्रतिपादन की विभिन्न शैलियों द्वारा दिखाई देने वाला विरोध मिट जाता है। (१६-१७) सामान्यनय और विशेषनय "आत्मद्रव्य सामान्यनय से हार-माला-कण्ठी के डोरे की भांति व्यापक है और विशेषनय से उसके एक मोती की भांति अव्यापक है।" १. आत्मा में अपने गुण-पर्यायों में व्याप्त होकर रहने की योग्यता को सामान्य धर्म कहते हैं और उसे जाननेवाला ज्ञान सामान्यनय कहलाता २. यदि द्रव्य अपने गुण-पर्यायों में व्याप्त न हो तो यह गुण या पर्याय इस द्रव्य की है - ऐसा किस आधार पर कहा जा सकेगा? अर्थात् ज्ञान आत्मा का गुण है और मतिज्ञान आदि आत्मा की पर्यायें हैं - ऐसा नहीं कहा जा सकता। ३. आत्मा में ऐसी योग्यता भी है जिससे उसका एक गुण या पर्याय अन्य गुणों या पर्यायों में प्रवेश नहीं कर सकती। प्रत्येक गुण अपनेअपने स्वभाव में और प्रत्येक पर्याय अपने-अपने स्वकाल में सत्रूप से विद्यमान है। इस योग्यता को ही विशेष धर्म कहते हैं और इसे जाननेवाले ज्ञान विशेषनय कहलाता है।
SR No.007255
Book TitleGuru Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMumukshuz of North America
PublisherMumukshuz of North America
Publication Year2013
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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