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गुरुचिंतन
घड़ी, रूमाल आदि वस्तुओं को देखकर उस व्यक्ति की याद आती है अतः इसे अदाकार स्थापना का प्रयोग कहा जा सकता है। द्रव्यनय
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१. आत्मा को उसकी भूत-भविष्य की पर्यायों के रूप में वर्तमान में देखा जा सके- ऐसी योग्यता उसमें है, जिसे द्रव्य नामक धर्म से जाना जाता है। उस योग्यता को जानने वाला ज्ञान द्रव्यनय है।
२. राजा के पुत्र को राजा के रूप में देखना, राजा यदि मुनि हो जाए तो भी उन्हें राजा के रूप में देखना तथा ऋषभादि तीर्थंकर भगवन्तो को सिद्ध हो जाने पर भी तीर्थंकर के रूप में देखना - ये सब द्रव्यनय के ही प्रयोग है।
३. पहला द्रव्यनय कहा गया था जो आत्मा को सामान्य चैतन्य मात्र देखता है और यह द्रव्यनय आत्मा को उसकी भूत-भविष्य की पर्याय के रूप में देखता है। प्रथम द्रव्यनय के साथ पर्यायनय कहा गया है और इस द्रव्यनय के साथ भावनय कहा गया है।
भावनय
१. आत्मा को उसकी वर्तमान पर्यायरूप में जाना जाए - ऐसी योग्यता को उसका भाव नामक धर्म कहा जाता है तथा इसे जाननेवाला श्रुतज्ञान भावनय कहा जाता है।
२. यदि कोई डॉक्टर पूजा कर रहा हो तो उसे डॉक्टर कहना द्रव्यनय है और पुजारी कहना भावनय है।
उपर्युक्त चारों नयों को निम्नलिखित सरल उदाहरण द्वारा भी समझा जा सकता है:
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जिनेन्द्र नाम के व्यक्ति को जिनेन्द्र कहना नामनय है। अन्तर्मुख वीतरागी प्रतिमा को जिनेन्द्र कहना स्थापना नय है। मुनिराज को जिनेन्द्र कहना द्रव्यनय है ।