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गुरुचिंतन अतः वे वक्तव्यपने के वाचक हैं तथा अन्त के चार भंग अवक्तव्य सम्बन्धी हैं।
(७-८-९) अस्ति अवक्तव्य, नास्ति अवक्तव्य,
अस्ति-नास्ति अवक्तव्यनय अवक्तव्यनय के बाद इन तीन नयों की विस्तृत व्याख्या दुर्लभ है, क्योंकि इनके प्रयोग बहुत कम पाये जाते हैं।
अस्ति अवक्तव्य धर्म से तात्पर्य है कि आत्मा का अस्तित्व बताया जाने पर भी नास्तित्व तथा नित्य-अनित्यादि धर्म नहीं कहे गए, अतः वह अस्ति-अवक्तव्यरूप योग्यतावाला है। स्वद्रव्य-क्षेत्र-कालभाव का वर्णन करके यह नहीं समझना चाहिए कि सम्पूर्ण वस्तु का वर्णन हो गया।
इसी प्रकार नास्तित्व-अवक्तव्य धर्म भी यह बताता है कि नास्तित्व से वस्तु का वर्णन करने पर भी वस्तु का बहुत अंश अवक्तव्य रह गया है।
यही स्थिति सातवें अस्ति-नास्ति अवक्तव्य धर्म के बारे में समझना चाहिए। यदि क्रमशः अस्ति-नास्ति दोनों धर्मों का वर्णन किया जाए तो भी वस्तु का सम्पूर्ण वर्णन नहीं हो पाएगा, क्योंकि नित्य-अनित्य आदि अन्य धर्म-युगल तथा ज्ञानादि अनन्त गुण नहीं कहे गए। किसी भी एक धर्मयुगल से वर्णन करने पर भी उसी समय वस्तु अवक्तव्य भी रह जाती है - इसी योग्यता का वाचक सातवाँ भंग है।
(१०-११) विकल्पनय और अविकल्पनय "आत्मद्रव्य विकल्पनय से बालक, कुमार और वृद्ध - ऐसे एक पुरुष की भांति सविकल्प है और अविकल्पनय से एक पुरुषमात्र की भांति अविकल्प है।"