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________________ गुरु चिंतन यहाँ विकल्प का अर्थ भेद है और अविकल्प का अर्थ अभेद है। जिसप्रकार एक ही पुरुष बालक, जवान और वृद्ध - इन अवस्थाओं का धारण करनेवाला होने से बालक, जवान एवं वृद्ध - ऐसे तीन भेदों में विभाजित किया जाता है, उसी प्रकार भगवान आत्मा भी ज्ञान, दर्शनादि गुणों एवं मनुष्य, तिर्यंच, नरक, देवादि अथवा बहिरात्मा, अन्तरात्मा, परमात्मा आदि पर्यायों के भेदों में विभाजित किया जाता है। 36 तथा जिसप्रकार बालक जवान एवं वृद्ध अवस्थाओं में विभाजित होने पर भी वह पुरुष खण्डित नहीं हो जाता, रहता तो वह एक मात्र अखंडित पुरुष ही है। उसी प्रकार ज्ञान दर्शनादि गुणों एवं नरकादि अथवा बहिरात्मादि पर्यायों के द्वारा भेद को प्राप्त होने पर भी भगवान आत्मा अखण्ड आत्मा ही रहता है। यहाँ यह प्रश्न हो सकता है कि द्रव्यनय और अविकल्पनय तथा पर्यायनय और विकल्पनय में क्या अन्तर है ? वैसे तो ये दोनों जोड़े एक से ही मालूम पड़ते है, परन्तु गहराई से विचार करने पर ऐसा लगता है कि द्रव्यनय आत्मा का चिन्मात्र धर्म बता रहा है और अविकल्पनय आत्मा की गुण-पर्यायों में व्याप्त होने की योग्यता को बता रहा है अर्थात् उसके अभेदरूप धर्म का वाचक है। इसी प्रकार पर्यायनय आत्मा को ज्ञान - दर्शन गुणों को बताता है और विकल्पनय उसकी भेद रूप योग्यता को बताता है। इस दृष्टि से सुधी जनों द्वारा यह प्रकरण विचारणीय है। (१२-१५) नामनय, स्थापनानय, द्रव्यनय और भावनय " आत्मद्रव्य नामनय से नामवाले की भाँति शब्दबम को स्पर्श करनेवाला है, स्थापनानय से मूर्तिपने की भाँति सर्व पुद्गलों का अवलम्बन करनेवाला है, द्रव्यनय से बालक, सेठ और श्रमणराजा की भाँति अनागत और अतीत पर्याय से प्रतिभासित होता है और भावनय से पुरुष के समान प्रवर्तमान स्त्री की भाँति वर्तमान पर्यायरूप से उल्लसित - प्रकाशित- प्रतिभासित होता है।"
SR No.007255
Book TitleGuru Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMumukshuz of North America
PublisherMumukshuz of North America
Publication Year2013
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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