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________________ गुरु चिंतन ३८. कर्तृनय, ३९. अकर्तृनय, ४०. भोक्तृनय, ४१. अभोक्तृनय, ४२. क्रियानय, ४३. ज्ञाननय, ४४. व्यवहारनय, ४५. निश्चयनय, ४६. अशुद्धनय ४७. शुद्धनय । 28 उक्त ४७ नयों की नामावली पर गहराई से विचार करने पर ज्ञात होता है कि नय क्रमांक ३ से ९ तक के नय सप्तभंगी सम्बन्धी हैं तथा १२ से १५ तक चार निक्षेप सम्बन्धी हैं। शेष ३६ नय परस्पर विरुद्ध प्रतीत होने वाले धर्मों को विषय बनाने वाले १८ धर्मयुगलों पर आधारित हैं। इन ४७ नयों द्वारा भगवान आत्मा के ४७ धर्मों को जानकर शेष अनन्त धर्मों का भी अनुमान किया जा सकता है तथा सम्यक् श्रुतज्ञान द्वारा अनन्त धर्मात्मक एक धर्मी आत्मा का अनुभव भी किया जा सकता है। स्वभाव, गुण, शक्ति और धर्म ४७ धर्मों को जानने से पूर्व स्वभाव, गुण, शक्ति और धर्म के स्वरूप की भी यथाशक्ति चर्चा करना आवश्यक है, क्योंकि आत्मा का स्वरूप बताते समय प्रायः इन चार बिन्दुओं की चर्चा अवश्य होती है। १. स्वभाव अनन्त गुण, शक्ति और धर्म ये सभी प्रत्येक वस्तु में पारिणामिक भाव रूप से विद्यमान रहते हैं। ये सभी कर्मों से निरपेक्ष हैं और द्रव्य के आत्म लाभ में अर्थात् उसके स्वरूप की रचना में हेतुभूत हैं अतः ये सब द्रव्य के स्वयं के भाव अर्थात् स्वभाव हैं। - - वस्तु के स्वरूप चतुष्टय में विद्यमान द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव में गुण, शक्ति और धर्म भाव में शामिल होंगे। अतः ये सभी वस्तु के स्व + भाव हैं। इसप्रकार स्वभाव सर्वव्यापी है जो वस्तु में गुण, शक्ति और धर्मों के रूप में त्रिकाल विद्यमान रहता है। प्रत्येक गुण, शक्ति या धर्म
SR No.007255
Book TitleGuru Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMumukshuz of North America
PublisherMumukshuz of North America
Publication Year2013
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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