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श्री प्रवचनसारजी - ४७ नय
जिस प्रकार ज्ञान मात्र आत्मा में अनन्त शक्तियाँ विद्यमान हैं, उसी प्रकार उसमें अनन्त धर्म भी विद्यमान हैं। आचार्य अमृतचन्द्रदेव ने समयसार की आत्मख्याति टीका में ४७ शक्तियों का वर्णन किया है और प्रवचनसार की तत्त्वप्रदीपिका टीका में ४७ नयों का वर्णन किया
अनन्त धर्मों में व्याप्त धर्मी आत्मा श्रुतज्ञान प्रमाण पूर्वक स्वानुभव से जाना जाता है। यह श्रुतज्ञान अनन्त नयों में व्याप्त है जो कि एकएक धर्म को विषय बनाते है।
४७ शक्तियों को जानने से आत्मा के वैभव का ज्ञान होता है और ४७ धर्मों को जानने से आत्मा के स्वरूप तथा उसमें विद्यमान अनेक योग्यताओं का परिचय प्राप्त होता है, जिससे आत्मा को अधिक स्पष्टता व गहराई से जाना जा सकता है।
यहाँ ४७ नयों के माध्यम से ४७ धर्मों के स्वरूप की संक्षिप्त चर्चा की जा रही है।
इन ४७ नयों के नाम इस प्रकार है :
१. द्रव्यनय, २. पर्यायनय, ३. अस्तित्वनय, ४. नास्तित्वनय, ५. अस्तित्वनास्तित्वनय, ६. अवक्तव्यनय, ७. अस्तित्व-अवक्तव्यनय, ८. नास्तित्व-अवक्तव्यनय, ९. अस्तित्व-नास्तित्व-अवक्तव्यनय, १०. विकल्पनय, ११. अविकल्पनय, १२. नामनय, १३.स्थापनानय, १४. द्रव्यनय, १५. भावनय, १६. सामान्यनय, १७. विशेषनय, १८. नित्यनय, १९. अनित्यनय, २०. सर्वगतनय, २१. असर्वगतनय, २२. शून्यनय, २३. अशून्यनय, २४. ज्ञानज्ञेय-अद्वैतनय, २५. ज्ञानज्ञेय-द्वैतनय, २६. नियतिनय, २७. अनियतिनय, २८. स्वभावनय, २९. अस्वभावनय, ३०. कालनय, ३१.अकालनय, ३२. पुरुषकारनय, ३३. दैवनय, ३४. ईश्वरनय, ३५. अनीश्वरनय, ३६. गुणीनय, ३७. अगुणीनय,