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________________ 24 गुरु चिंतन २८. विरुद्धधर्मत्वशक्ति- तदतद्रूपमयत्वलक्षणा विरुद्धधर्मत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, तत्स्वरूप और अतत्स्वरूप ऐसे विरुद्ध धर्मों को एकसाथ धारण करता है, उसे विरुद्धधर्मत्व शक्ति कहते हैं। ― २९. तत्त्वशक्ति - तद्रूपभवनरूपा तत्त्वशक्तिः । अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, अपने स्वरूप परिणमन करता है, उसे तत्त्वशक्ति कहते हैं । ३०. अतत्त्वशक्ति - अतद्रूपभवनरूपा अतत्त्वशक्तिः । अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, कभी परस्वरूप परिणमन नहीं करता है, उसे अतत्त्वशक्ति कहते हैं। ३१. एकत्वशक्ति- अनेकपर्यायव्यापकैकद्रव्यमयत्वरूपा एकत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, अनेक पर्यायों ( सहभावी पर्याय अर्थात् गुण एवं क्रमभावी पर्याय अर्थात् पर्याय) में व्यापक एकद्रव्यमय रहता है, उसे एकत्वशक्ति कहते हैं । ३२. अनेकत्वशक्ति- एकद्रव्यव्याप्यानेकपर्यायमयत्वरूपा अनेकत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, एक द्रव्य में व्यापक अनेक पर्याय मय (सहभावी पर्याय एवं क्रमभावी पर्यायमय अर्थात् गुण-पर्यायमय) होता है, उसे अनेकत्वशक्ति कहते हैं । ३३. भावशक्ति (प्रथम) - भूतावस्थत्वरूपा भावशक्तिः । अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, वर्तमान अवस्था रूप रहता है, उसे भावशक्ति ( प्रथम ) कहते हैं। ३४. अभावशक्ति - शून्यावस्थत्वरूपा अभावशक्तिः । अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, वर्तमान अवस्था के अलावा अन्य अवस्थारूप नहीं रहता है अर्थात् अन्य अवस्थाओं की अपेक्षा शून्य
SR No.007255
Book TitleGuru Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMumukshuz of North America
PublisherMumukshuz of North America
Publication Year2013
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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