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गुरु चिंतन नैष्पंद्यरूपा निष्क्रियत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, समस्त कर्मों के अभाव में प्रवृत्त निस्पन्द स्वरूप आत्मप्रदेशों वाला होता है, उसे निष्क्रियत्व शक्ति कहते हैं।
२४. नियतप्रदेशत्व शक्ति- आसंसारसंहरणविस्तरणलक्षितकिंचिदूनचरमशरीरपरिमाणावस्थितलोकाकाशसम्मितात्मावयवत्वलक्षणा नियतप्रदेशत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, संसार अवस्था में संकोच-विस्तार सहित तथा मोक्ष अवस्था में चरम शरीर से किंचित् न्यून परिमाण में अवस्थित होते हुए भी आत्मा के अवयव अर्थात् उसके असंख्य प्रदेश लोकाकाश के बराबर ही रहते हैं, उसे नियतप्रदेशत्व शक्ति कहते हैं।
२५. स्वधर्मव्यापकत्वशक्ति- सर्वशरीरैकस्वरूपात्मिका स्वधर्मव्यापकत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, सर्व शरीरों में एकस्वरूपात्मक ही रहता है अर्थात् अपने ज्ञान-दर्शन आदि धर्मों में व्यापक रहता है, स्वधर्मव्यापकत्वशक्ति कहते हैं।
२६.साधारण-असाधारण-साधारणासाधारणधर्मत्वशक्तिस्वपरसमानासमानसमानासमानविविधभावधारणात्मिका साधारणासाधारणसाधारणासाधारणधर्मत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, स्व-पर द्रव्यों से समान, असमान और समानासमान ऐसे तीन प्रकार के भावों को धारण करता है, उसे साधारण-असाधारणसाधारणासाधारणधर्मत्वशक्ति कहते हैं।
२७. अनन्तधर्मत्वशक्ति- विलक्षणानंतस्वभावभावितैकभावलक्षणा अनंतधर्मत्व शक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, विशेष-विशेष लक्षण वाले अनन्त स्वभावों से भावित (व्याप्त/ पवित्रित/सिद्ध/संतृप्त/सरावोर/मिश्रित) एकभाव धारण करता है, उसे अनन्तधर्मत्व शक्ति कहते हैं।