SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरु चिंतन अवस्थारूप रहता है, उसे अभावशक्ति कहते हैं। ३५. भावाभावशक्ति-भवत्पर्यायव्ययरूपा भावाभावशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, वर्तमान पर्याय का आगामी समय में व्यय करता है, उसे भावाभावशक्ति कहते हैं। ३६. अभावभावशक्ति- अभवत्पर्यायोदयरूपा अभावभावशक्तिः । अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, वर्तमान समय में अविद्यमान परन्तु आगामी समयों में होनेवाली पर्यायों को उनके अपने-अपने जन्मक्षणों में उत्पन्न करता है, उसे अभावभावशक्ति कहते ३७. भावभावशक्ति- भवत्पर्यायभवनरूपा भावभावशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, अपने-अपने समयों में होनेवाली वर्तमान पर्यायों को उन-उन समयों में उत्पन्न करता है, उसे भावभावशक्ति कहते हैं। ३८. अभावाभाव शक्ति- अभवत्पर्यायाभवनरूपा अभावाभावशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, अस्वभावभूत त्रिकालवर्ती पर्यायों को कभी नहीं होने देता है, उसे अभावाभाव शक्ति कहते हैं। ३९. भावशक्ति (द्वितीय) - कारकानुगतक्रियानिष्क्रान्तभवनमात्रमयी भावशक्तिः । अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, कारकों के अनुसार क्रिया से रहित होकर भवन या परिणमनमात्रमयी होता है, उसे (द्वितीय) भावशक्ति कहते हैं। ४०. क्रियाशक्ति- कारकानुगतभवत्तारूपभावमयी क्रियाशक्तिः । अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, सकलकारकों के अनुसार होनेरूप भावमयी होता है, उसे क्रियाशक्ति कहते हैं।
SR No.007255
Book TitleGuru Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMumukshuz of North America
PublisherMumukshuz of North America
Publication Year2013
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy