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________________ 3. श्रीसमयसार जी - ४७ शक्तियाँ ज्ञानानंदस्वभावी आत्मा के एक ज्ञानमात्र भाव के भीतर अनंत शक्तियाँ उछलती हैं, उनमें से ४७ शक्तियों का व्याख्यान आचार्य अमृतचन्द्रदेव ने समयसार की आत्मख्याति टीका के परिशिष्ट में किया है। आचार्यदेव ने उनका संस्कृत भाषा में बहुत ही सारगर्भित विवेचन अत्यंत संक्षेप में प्रस्तुत किया है, उसी विवेचन के आधार पर यहाँ संस्कृत व्याख्या के साथ उनका संक्षिप्त सारांश भी प्रस्तुत किया गया है। १. जीवत्वशक्ति - आत्मद्रव्यहेतुभूतचैतन्यमात्रभावधारण लक्षणा जीवत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, आत्मद्रव्य के कारणभूत चैतन्यमात्र भावप्राण को धारण करता है, उसे जीवत्वशक्ति कहते हैं। २. चितिशक्ति-अजडत्वात्मिका चितिशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, जड़रहित चेतनस्वरूप होता है, उसे चितिशक्ति कहते हैं। ३. दृशिशक्ति - अनाकार उपयोगमयी दृशिशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, अनाकार दर्शनोपयोग स्वरूप होता है, उसे दृशिशक्ति कहते हैं। ४. ज्ञानशक्ति - साकार उपयोगमयी ज्ञानशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, साकार ज्ञानोपयोगमयी स्वरूप होता है, उसे ज्ञानशक्ति कहते हैं। ५. सुखशक्ति - अनाकुलत्वलक्षणा सुखशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, अनाकुल सुखस्वरूप होता है, उसे सुखशक्ति कहते हैं। ६. वीर्यशक्ति-स्वरूपनिर्वर्तनसामर्थ्यरूपा वीर्यशक्तिः। अर्थात्
SR No.007255
Book TitleGuru Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMumukshuz of North America
PublisherMumukshuz of North America
Publication Year2013
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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