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________________ 20 __ गुरु चिंतन जिस शक्ति के कारण आत्मा, स्वरूप-रचना करने की सामर्थ्य से सहित होता है, उसे वीर्यशक्ति कहते हैं। ७. प्रभुत्वशक्ति - अखण्डितप्रतापस्वातंत्र्यशालित्वलक्षणा प्रभुत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, अखण्डित प्रताप एवं स्वतंत्रता से शोभित होता है, उसे प्रभुत्वशक्ति कहते हैं। ८. विभुत्वशक्ति- सर्वभावव्यापकैकभावरूपा विभुत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, सर्वभावों में व्यापक एकभावस्वरूप रहता है, उसे विभुत्वशक्ति कहते हैं। ९.सर्वदर्शित्वशक्ति- विश्वविश्वसामान्यभावपरिणतात्मदर्शनमयी सर्वदर्शित्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, समस्त विश्व के सामान्यभाव से परिणमित आत्मदर्शनमयी होता है, उसे सर्वदर्शित्व शक्ति कहते हैं। १०. सर्वज्ञत्वशक्ति - विश्वविश्वविशेषभावपरिणतात्मज्ञानमयी सर्वज्ञत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, समस्त विश्व के विशेष भावों को जाननेरूप से परिणमित आत्मज्ञानमयी होता है, उसे सर्वज्ञत्व शक्ति कहते हैं। ११. स्वच्छत्वशक्ति-नीरूपात्मप्रदेशप्रकाशमानलोकालोकाकारमेचकोपयोग लक्षणा स्वच्छत्वशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, अमूर्तिक आत्मप्रदेशों में प्रतिबिम्बत समस्त लोकालोक के आकारों के कारण विचित्र उपयोग लक्षणवाला होता है, उसे स्वच्छत्वशक्ति कहते हैं। १२. प्रकाशशक्ति - स्वयंप्रकाशमानविशदस्वसंवित्तिमयी प्रकाशशक्तिः। अर्थात् जिस शक्ति के कारण आत्मा, स्वयं प्रकाशमान निर्मल स्वसंवेदनमयी होता है, उसे प्रकाशशक्ति कहते हैं।
SR No.007255
Book TitleGuru Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMumukshuz of North America
PublisherMumukshuz of North America
Publication Year2013
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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