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________________ आगम (४०) आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः) भाग-४ अध्ययनं [१], नियुक्ति: [८४७], विभा गाथा [-], भाष्यं [१५०...], मूलं F /गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सत्राक श्रीआव- अनस्स होहिइ ?, रण्णा सद्दावेऊण कयपुन्नगो धूयाए विवाहावितो, विसओ य से दिनो, भोगं भुंजइ, गणियाधि आगया, दाने कृतश्यकमल- भणइ-एचिरकालं अहं वेणीबंघेण अच्छिया, सबट्ठाणाणि तुमंअट्टाए गबेसावियाणि, एत्थं सि दिवोत्ति ॥ कयपुण्ण- पुण्यः य० वृत्ती गो अभयं भणइ-एत्थ मम चत्तारि महिलातो सडरूवाओ, तं घरं च न याणामि, साहेचेश्यघरं कयं, लेप्पगजक्लो याबिनये पुउपोद्घाते कयपुन्नगसरिसो कतो, तस्स अच्चणिया घोसाबिया, दो य दाराणि कयाणि, एगेण पवेसो एगेण निफेडो, तत्थ अभओपिशाल हाकयपुनगो य एगत्थ बारब्भासे आसणवरगया अच्छंति, ताहे कोमुदी आणत्ता, जहा अज पडिमापबेसोत्ति अच्चणियं सुतः ॥४६५॥ हैकरेत, नयरे य घोसावियं-सबमहिलाहिं सचेडरूयाहिं आगंतवं, ताहे लोगो एइ, तातोऽवि आगचातो, चेडरूपाणि बप्पोत्ति | उच्छंगे निवेसंति, एवं तातो नायातो, थेरी अंबाडिया अभएणं, तातोऽधि आणीयातो, पच्छा जहासुहं भोगे मुंजइ सत्त४ाहिवि सहितो । वद्धमाणसामी समोसरितो, कयपुनगो सामि बंदिऊण पुच्छइ अप्पणो संपत्तिं विपत्सिं च, भगवया कहियं पायसदाणं, संवेगेण पबइतो, एवं दाणेण सामाइयं लभइ ४॥ I इदाणी विणएणं, जहा मगहाविसए गोबरगामे पुष्फसालो गाहावती, भद्दा भारिया, पुत्तो से पुप्फसालसुतो, सो| मायापियरं पुच्छइ-को धम्मो ?, तेहि भण्णइ-दो चेव देवयाओ माया पियरो य जीवलोगम्मि । तत्वबि पिया विसिट्टो जस्स बसे वट्टई माया॥१॥ताहे सो ताण पायमुहधोवणाई विभासा, देवयाणि व सुस्टूसइ, अक्षया गामभोइओ आगतो, ४६५ ॥ ताणि संभंताणि पाहुणं करेंति, सो चिंतेइ-एयाणबि एस देवयं, एवं पूएमि तो धम्नी होहिद, तस्स सुस्सूया पकया, अन्नया तस्स भोइयस्स अन्नो महलो दिट्ठो जाव सेणितो राया, ओलग्गिउमारद्धो. सामी समोसहो, सेणिओ शहीए गंतूण| दीप अनुक्रम ~52~
SR No.007204
Book TitleAagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages327
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size27 MB
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