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________________ आगम (४०) आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः) भाग-४ अध्ययनं [१], नियुक्ति: [९४४-९४५], विभा गाथा , भाष्यं [१५१..], मूलं - /गाथा-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक RAKAR यबो, लट्ठीए आदिभागो, समुग्गकस्स बारमिति, केणइ ताणि न नायाणि, रन्ना पालित्ता आयरिया सद्दाविया, तुज्झे जाणह: भयवंति ?, भणंति-बाढं जाणामि, सुत्तं उण्होदए छुढं, मयणं विराय, दिवाणि अग्गिलगाणि, दंडो पाणिए छूढो, मूलं PIगुरुगं, समुग्गको जउणा घोलितो, उण्होदए कहितो उग्घाडितो, ततो पुणोऽवि पालित्तायरिपहिं दोद्वियं सगलगं राइलेऊण तत्य रयणाणि छूढाणि, ततो तेणगसिविणीए सीवेऊण विसज्जियं, अभिदंता फोडेह, न सकियं, पालित्तायरियाणं घेण-15 &ाइगी बुद्धी ९॥ 'अगए' इति, एगो राया, तस्स नगरं गहे परबलं एइ, रण्णा पाणियाणि विणासियवाणित्ति विसकरो कपाडितो, पंजा विसस्स कता, विज्जो एगो (थोषेण विसेण उवडिओ) राया थोयं ददृण रहो, वेज्जो भणइ-सयसहस्सवेधी| एवं विसं, नो थोवं, राया भणइ-कह', ततो खीणाऊ हत्थी आणावितो, पुच्छवालो उप्पाडितो, तेण चेव रोमकूवेण हैविसं दिन्नं, विवन्नं सरीरं करेंतं गच्छंतं च दीसइ, एस सबो विसं, जोवि एवं खाइ सोवि विसं, एवं सयसहस्सवेही, राया भणइ-अस्थि निवारणविही, बाद अस्थि, तहेव अगदो दिनो, तं समेंतो जाइ, वेज्जस्स वेणइगी १०॥ रहियो गणिया एय एक उदाहरणं, पाइलिपुत्ते नयरे दोगणियातो-कोसा उवकोसाय, कोसाए समं थूलभद्दसामी अच्छितो आसि, पवइतो, *जाव परिसारत्तो तस्थेव कतो, ततो साविया, पञ्चक्खाइ अबभस्स अन्नत्थरायनिओएण, रहिएणराया आराहितो, सा कोसा। तस्स दिन्ना, सा य थूलभद्दसामिणो अभिक्खणं गुणग्गहं करेइ, तं न तहा उवचरड, सो तीए अप्पणो विन्नाणं दरिसेउ-13 दाकामो असोगवणियं नेइ, भूमीगएणं अंबटुंबी कंडेण विधित्ता कंडपोखे अन्नोन कंडं लाएंतेण हत्थन्भासं कंडसंतई (पाविय)। अंबटुंबी अद्धचंदेण छिन्ना गहिया य, तहवि न तूसति, भणइ-किं सिक्खियस्स दुकरं , सा भणइ-पेच्छ ममंति, सिद्ध अनुक्रम ~171
SR No.007204
Book TitleAagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages327
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size27 MB
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