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________________ आगम (४०) आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः) भाग-४ अध्ययनं [१], नियुक्ति: [९४१-९४२], विभा गाथा , भाष्यं [१५१...], मूलं - /गाथा-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सुत्राक श्रीआव- अम्हे, किह इंगाला जाया ?, तेण विइएण नायं, हिययं न दंसेइ, ततो सो धुत्तपडिधुतिं करेमाणो तस्स नियघरे पडिमंद औत्पत्तिश्यकमल- I करिता दो मकडए लएइ, ततो तीए पडिमाए औच्छंगे बाह्रसु उवरि भत्तं निवेसेइ, ते छहाइया तं पडिमं सबतो चकुंति, क्या उदायगिरीय-18 अण्णया भोयणं सज्जियं, दारगा निमंतिया, घरं नीया, संगोविया य, न दरिसेइ, भणइ य-मक्कडा जाया, ततो पुत्तदुक्ख-18 हरणानि वृत्ती नम-IMसंतत्तो तस्स घरमागतो, लेप्पगपडिमाठाणे ठावितो, मकडा मुका, किलकिलंता विलग्गा, सबतो फुसंति, भणिओ-एए स्कारे तव पुत्ता, सो भणइ-कहं दारगा मकडा भवंति !, इयरो भणइ-जहा दीणारा इंगाला जाया तहा दारगावि मक्कडा, एवं नाए दिनो भागो, एयस्स उप्पत्तिया बुद्धी २२। शिक्षाशाखं-धनुर्वेदः, तत्रोदाहरणम्-एगो कुलपुत्तगो धणुदकुसलो, सो ॥ ५२२॥ हिंडतो एगत्थ ईसरपत्ते सिक्खावेह, दवं विडतं, तेसिं पिइनिस्सिया चिंतेति-बहुग दवं एयस्स दिन्नं, जइया जाहिइ तइया मारिजिहिति, गेहातो य नीसरणं केणवि उवाएणं न देंति, तेण नाय, ततो दबं सन्नायगाणं संचारियं, जहा अहं रत्ति छाणपिंडगे नदीए छुहिस्सामि ते लएजाह, तेण छाणगोलगा दबेण सम संवलिया, एसा अम्हं विहित्ति पतिहीसु तेहिं दारगेहिं समं नदीए छुहर, एवं निबाहेऊण नट्ठो, एयस्स उप्पत्तिया बुद्धी २३॥ अत्थसत्थे उदाहरणं-एगो वाणियगो दोहिं | भजाहिं समं देसंतरं गतो, तत्थ मतो, तस्स एगाए भजाए पुत्तो, सो विसेसं न याणइ, तासि परोप्परं भंडणं, एगा भणइ-मम पुत्तो, बिइया भणइ-मम, रायउले ववहारो जातो, नो छिज्जइ, ततो भगवतो सुमइनाहस्स गन्भत्थस्स माऊए मंगलादेवीए नायं, ततो सद्दावियातो, भणियातो य-मम पुत्तो जाहिति सो एयस्स असोगवरपायवस्स हेट्ठा ठिओ ववहारं * छिदिहिति, ताव दोवि अविसेसेण खाह पिवहत्ति, जीसे न पुत्तो सा चिंतेइ-एत्तिगो ताथ कालो लद्धो, पच्छा न याणामो SISEASES दीप अनुक्रम SAMRATAR Frphansparmoniumch ~166~
SR No.007204
Book TitleAagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages327
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size27 MB
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