________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[-]
दीप अनुक्रम [3]
Jan Education
आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + वृत्तिः) भाग-४
अध्ययनं [१], निर्युक्तिः [ ९९१८ ], वि० भा० गाथा [-] भाष्यं [ १५१...], मूलं [- / गाथा-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक" निर्युक्ति एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्तिः
किमपि विमर्शतश्चेत्यर्थः ४ । हांसे खुडुगा उदाहरणम् - खुड्डुगा अनं गामं भिक्खायरियाए गया, वाणमंतरं उवायंति - जइ फबामो तो वियडेणं उंडेरगेहिं तिलकुट्टियाए य अच्चणियं देहामो, लद्धं, सो वाणमंतरो मग्गर, अन्नमन्नस्स कहणं, मग्गिऊण दिनं, एयं ते संति, ताहे सयं चैव तं पक्खाइया, कंदप्पिया देवा तेसिं रूवं आवरेत्ता रमइ, वियाले मग्गिया, न दिट्ठा, देवयाए आयरियाण कहियं ॥ पओसे उदाहरणं संगमतो | बीमंसाए एगत्थ देवकुलियाए साहू वासावासं वसित्ता गता, तेसिंच एगो पुवपेसितो चेव वरिसारत्तं करेउमागतो, ताए देवकुलियाए आवासितो, देवया चिंतेइ किं दढधम्मो नवेति, सद्धीरूवेण उवसग्गेर, सो नेच्छइ, तुट्ठा बंद पुढोबेमायाए हासेण करेजा, एवं संजोगा । मानुषाश्चतुर्विधाः- हास्यात् प्रद्वेषात् विमर्शात् कुशीलप्रति से वनात्, विमात्रापक्षस्यात्र हास्यादिष्वेवान्तर्भावविवक्षणाद्, हास्ये उदाहरणं गणिकापुत्रिका, एगा गणियाधूया, खुडुगं भिक्खागयं उवसग्गेइ, सा खुड्डुगेण दंडिण हया, तीए रण्णो कहियं, रण्णा खुड्डगो सावितो, सिरिघरदितं करेइ, जहा महाराय ! तव सिरिघरे रयणाणि मुसद्द तस्स को दंडो ?, रण्णा भणियं-सबस्सावहारो जीवियाओ ववशेवणं (च), जइ एवं तो एसावि मम नाणदंसणचरणाणि मुसइत्ति दंडेण हया, राया तुट्टो, पूऊण खुडगो विसज्जितो ॥ पदोसे गयसुकुमालो सोमभूइणा विवरोवितो, अहवा एगो चिज्जाइतो एगाए अविरइयाए सद्धिं अकिचं सेवमाणो साहुणा दिट्टो, पदोसमावण्णो, साहुं मारेमित्ति पधावितो, साहुं पुच्छर, किं तुमे अज्ज दिहं ?, साहू भणइ बहुं सुणेइ कण्णेहिं, बहुं अच्छीहिं पेच्छइ । नय दिई सुर्य पुर्व, भिक्खु अक्खाडमरिहइ ॥१॥ वीमंसाए, चंदगुत्तो राया चाणकेण भणितो- पारतियं करेज्जासि, सुसीसो य किर सो आसी, अंतेउरे अन्नतित्थिया हक्कारावेऊणं धम्मक कहावेइ, अंतेउरीहिं उवसग्गिता विणट्ठा निच्छूढा य, साहू सद्दाविया भांति
Pur Private & Personal Use Only
~139~