SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (४०) आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः) भाग-४ अध्ययनं [१], नियुक्ति: [९१८], विभा गाथा , भाष्यं [१५१...], मूलं - /गाथा-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सुत्राक सुंदरी स्कारे श्रीआय-I भणिय-तुम्भं व सगासातो सुया देसणा, निवारणं च, तीए भणिय-अहो ! ते पंडियत्तणं वियारक्खमगं धंमयापरि-1 मायायां श्यकमल-IPणामो, मया सामपणेण बहुदोसमेयं भणियंति से उबदिटुं, वारिया य, किमेतायता दुचारिणी होई, ततो सो लजितो, सर्वागयगिरीय-18 मिच्छादकई से दवावितो, चिंतियं च णाए-एस ताव मे कसिणधवलपडियज्जगो, वितिओऽषि एवं चेव विनासितो, वृत्तौ नम- नवरं सा भणिया-किंबहणा, हत्थं रक्खेज्जासित्ति, सेसविभासा तहेव जाव एसोऽवि मे कसिणधवलपडियजगोत्ति, एत्थर पुण इमाए नियडीए अभक्खाणदोसतो तिथं कम्मं निबद्धं, पच्छा एयस्स अपडिकमिय भावतो पवइया, भायरोवि से सह जायाहिं पपइया, अहाउग पालित्ता सुरलोगं गयाणि, तत्थवि अहाउयं पालित्ता भायरो से पढ़म चुया सागेए नयरे ॥५०॥ असोगदत्तस्स समुहदत्तसागरवत्ताभिहाणा पुत्ता जाया, इयरीवि चइऊण गयउरे नगरे संखस्स इन्भस्स सावगस्स धूया जाया, अतीव सुंदरित्ति सवंगसुंदरी से नाम कयं, इयरीतोऽवि भाउज्जायातो चविक्रण कोसलाउरे नंदणाभिहाणस्स इन्भस्स सिरिमइ-कंतिमइनामातो धूयातो आयातो, जोवणं पत्ताणि सवाणि, सबंगसुंदरीवि कहिं पि साकेया गयपुरमागएण असोगदत्तसेविणा दिट्ठा, कस्सेसा कण्णगति कस्सवि समीचे पुच्छिय, नायं संखस्स, ततो सबहुमाणं समुद्ददत्तस्स मग्गिया, लद्धा, विवाहो कतो, कालंतरेण सो विसज्जायगो समुद्ददत्तो अइगतो, उवयारो से कतो, वासहरं सज्जियं, एत्थंतरंमि य सबंगसुंदरीए तं नियडिनिबंधणं पढमकम्मं उदितं, ततो भत्तारेण से वासघरहिएण वोलेंती ॥५०२॥ देविगी पुरिसच्छाया दिट्ठा, ततो तेण चिंतियं-दुद्रुसीला मे महिला, कोइ अवलोइउं गतोति, पच्छा सा आगया, न तेण 8बोल्लाविया, ततो अदृदुहट्टयाए धरणीए चेव रत्तिं गमिता, पभाए से भत्तारो अणापुच्छिय सयणवग्ग एगस्स घिजाइगस्स CAREERSARAKAR दीप अनुक्रम SmECarton mehtami ~126~
SR No.007204
Book TitleAagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages327
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy