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________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः ) भाग-३ अध्ययनं -1, नियुक्ति: [७७३-७७६], विभागाथा -], भाष्यं [१३७...], मूलं -/गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक ROCACCORG आहडपिंड पइदिवसं आणेर, पच्छा तं सवेसि पवइयाणं देइ, भणइ य-एवं बारस वरिसे भोत्सर्व, मिक्खा य नथि, जइ जाणह उस्सरंति संजमगुणा तो मुंजह, अह जाणह नवि तो भत्त्रं पञ्चक्खामो, ताहे भणंति-किं एरिसेण विजापिडेण भुत्तेण!, भत्तं पञ्चक्खामोत्ति, एवं निच्छियववसाया जाया, आयरिएहिं पुषामेव नाऊण सिस्सो वइरसेणो नाम पेसणेण पठवितो, भणितो य-जाहे तुमं सयसहस्सनिष्फन्नं भिक्खं लभिहिसि ताहे जाणेजासि-जहा नहूँ दुम्भिक्खंति, ततो वइरसामी समणगणपरिवारितो एगं पवयं विलग्गिउमारद्धो, तत्थ भत्तं पञ्चक्खामोति, एगो य तस्थ खुड्डुगो, सो साहहिं वुञ्चइ-तुर्म वच्च, सो नेच्छइ, ताहे सो एगमि गामे तेहिं विमोहितो, पच्छा गिरि विलग्गा, खुड्डगो ताण गयमग्गेण गंतूण मा तेसिं असमाद्दी होउत्ति तरसेव हेडा सिलायले पाओवगतो, ततो सो उण्हेण नवणीयमिव विराओ अचिरकालेणेव कालगतो, देवेहिं महिमा कया, ताहे आयरिया भणंति-खुडुएण अट्ठो साहितो, तत्थ ते साहुणो दुगु-12 णाणीयसहासंवेगा जाया, जइ ताव बालेण होतएण एवं कयं तो अम्हे कीस न सुंदरं करेमो', तस्य य देवया पडिपणीया, ते साहुणो सावियारूवेण भत्तपाणेण निर्मतेइ-अज्ज मे पारणयं करेह, ताहे आयरिएहिं णायं-जहा अचियत्तोग्ग-1 होत्ति, तस्थ य अन्भासे अन्नो गिरी, तं गया, तत्थ य देवयाए काउस्सग्गो कतो, सा आगंतूण भणइ-अहो मम अणुग्गहो, अच्छइ, तत्थ समाहीए कालगया, ततो ईदेण रहेण बंदिया, पयाहिणीकरेंतेण तरुवरादीणि दासिल्लाणि कयाणि, तेण तस्स रहावत्तो नाम जाय, तम्मि य भयवंते अद्धनारायं दस पुवा य वोच्छिन्ना। सो वइरसेणो जो पेसितो पेसणेण सो भमंतो सोपारय पत्तो, तत्थ य साविया अहिगयजीवाजीवाइया ईसरी, सा दीप अनुक्रम an den ~206~
SR No.007203
Book TitleAagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages316
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size26 MB
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