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आगम
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"आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः ) भाग-३ अध्ययनं [-], नियुक्ति: [७६३-७६४], विभा गाथा -], भाष्यं [१३७...], मूलं /-/गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
सुट्ठयर अद्धिई जाया, ताहे सामी गोयम भणइ-किं देवाणं वयणं गेझं उयाहु जिणवराणं !, गोयमो भणइ-जिणव-19 राणं, कीस अधिई करेसि!, ताहे सामी चत्तारि कडे पनवेइ, तंजहा-सुंबकडे विदलकडे चम्मकडे कंवलकडे, एवं 8 सीसावि सुंबकडसमाणा जाव कंबळकडसमाणा, तुमं च मम गोयमा कंबलकडसमाणो, किंच-चिरसंसिद्धो सि मे गोयमा !, पण्णत्तीआलावगा भाणियबा, जाव अविसेसामणाणत्ता भविस्सामो, ताहे गोयमनिस्साए दुमपत्तं णाम अज्झयणं पन्नवेइ । देवोऽवि वेसमणो ततो चइत्ता अवन्तिजणवए तुंबवणसन्निवेसे धणगिरी नाम इन्भपुत्तो, सो य सद्धो पब- इउकामो, तस्स मायापियरो वारंति, पच्छा सो जत्थ जत्थ वरिजइ तत्थ तत्थ ताणि विप्परिणामेइ जहाऽहं पबइज-14
कामो, इओ य धणवालस्स इन्भस्स दुहिया सुनंदा नाम, सा भणइ-मम देह, सा तस्स दिन्ना, तीसे य भाया अजसदिमिओ पुर्व पबइओ सीहगिरिसगासे, तीसे य सुनंदाए कुच्छिसि सो देवो उबवन्नो, ताहे भणइ धगिरी-एस ते गम्भो
विडजओ होहिइत्ति सीहगिरिसगासे पबहो, इमोऽविनवण्हं मासाणं दारगो जातो, तत्थ महिलाहिं आगयाहिं भण्णइ-14
जइ से पिया न पधइतो होतो ता लर्ट होतं, सो सन्ची जाणइ-जहा मम पिया पचइतो, तस्सेवं अणुचिंतेमाणस्स जाइ-15 दसरणं समुप्पण्णं, ताहे रतिं दिवा य रोवइ, जेण सा निविजइ, ततो सुई पचइस्संति, एवं छम्मासा वच्चति । अण्णाया|
आयरिया समोसढा, वाहे अजसमिओ धणगिरी य आयरियमापुच्छंति, जहा सन्नायगाणि पेच्छामोत्ति संदिसाति, 13 सउणेण य वाहिय, आयरिएहि भणियं-महंतो लाभो, जं अज सचित्तं वा अचित्तं वा लभह तं सर्व लएह, ते गया,
उपसग्गिउमारद्धा, अण्णाहिं महिलाहिं भण्णाह-एयं से दारगं णीणेहि, तो कहिं नेहिम्ति , पच्छा ताए भणियं-मए एव
दीप अनुक्रम
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